विश्वकर्मा पूजा: सही विधि, मंत्र और आरती से पाएं व्यापार में सफलता

विश्वकर्मा पूजा: व्यापार में प्रगति के लिए सही विधि
विश्वकर्मा पूजा: सही विधि, मंत्र और आरती से पाएं व्यापार में सफलता: विश्वकर्मा पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे कन्या संक्रांति के दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था। उन्हें स्वर्ग, पुष्पक विमान, कुबेरपुरी, सोने की लंका और द्वारका जैसे अद्भुत निर्माणों का रचनाकार माना जाता है।
यह दिन कारीगरों, इंजीनियर्स और व्यापारियों के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से कार्य में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं और व्यापार में अपार सफलता प्राप्त होती है। आइए जानते हैं विश्वकर्मा पूजा 2025 की सही विधि, मंत्र और आरती।
विश्वकर्मा पूजा का मंत्र
विश्वकर्मा पूजा में इस मंत्र का जाप विशेष फलदायी होता है:
“नमस्ते विश्वकर्माय, त्वमेव कर्तृता सदा। शिल्पं विधाय सर्वत्र, त्वं विश्वेशो नमो नमः।।”
यह मंत्र भगवान विश्वकर्मा की कृपा प्राप्त करने और कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए जपने की सलाह दी जाती है।
विश्वकर्मा पूजा की विधि
विश्वकर्मा पूजा को सही तरीके से करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
सुबह जल्दी उठकर अपनी गाड़ी, मशीन या दुकान को अच्छे से साफ करें। इसके बाद स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और अपनी पत्नी के साथ पूजा स्थल पर बैठें। सबसे पहले श्री हरि विष्णु का ध्यान करें और उन्हें फूल अर्पित करें। फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा आरंभ करें। पूजा स्थल पर जल से भरा कलश, अक्षत, माला, धूप, सुपारी, फूल, चंदन, पीली सरसों आदि रखें।
हाथ में फूल और अक्षत लेकर इस मंत्र का जाप करें: “ऊं आधार शक्तपे नमः ऊं कूमयि नमः ऊं अनंतम नमः ऊं पृथिव्यै नमः ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः।” इसके बाद अक्षत और फूल भगवान को अर्पित करें। पीली सरसों की चार पोटलियां बनाकर चारों दिशाओं में द्वार पर बांधें। पूजा में शामिल सभी लोगों को कलावा बांधें। जमीन पर आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाकर उस पर फूल चढ़ाएं। अंत में विश्वकर्मा जी की आरती करें और प्रसाद बांटें। अगले दिन भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा का विसर्जन करें।
विश्वकर्मा जी की आरती
विश्वकर्मा पूजा को और खास बनाने के लिए इस आरती का गायन करें:
ॐ जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा॥ ॐ जय…
आदि सृष्टि में विधि को श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्रा का जग में, ज्ञान विकास किया॥ ॐ जय…
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥ ॐ जय…
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुःख कीना॥ ॐ जय…
जब रथकार दंपति, तुम्हरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत हरी सगरी॥ ॐ जय…
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे॥ ॐ जय…
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे॥ ॐ जय…
“श्री विश्वकर्मा जी” की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥ ॐ जय…