Newzfatafatlogo

वृश्चिक संक्रांति: पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

वृश्चिक संक्रांति का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन सूर्य तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है। 16 नवंबर 2025 को मनाए जाने वाले इस पर्व पर स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है। जानें इस दिन के शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में, जिससे आप 100 यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त कर सकें।
 | 
वृश्चिक संक्रांति: पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

स्नान-दान से मिलेगा 100 यज्ञों के समान पुण्य


Vrishchik Sankranti, नई दिल्ली: हिंदू धर्म में संक्रांति का महत्व अत्यधिक है, जिसमें वृश्चिक संक्रांति का पर्व विशेष रूप से पुण्यदायी माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्य तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, तब इसे वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।


पंचांग के अनुसार, 2025 में वृश्चिक संक्रांति का पर्व 16 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य व्यक्ति को 100 यज्ञों के समान फल प्रदान करता है।


शुभ मुहूर्त

संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजा के लिए पुण्यकाल और महापुण्यकाल का समय विशेष फलदायी माना जाता है। इस अवधि में किए गए धार्मिक कार्यों का फल कई गुना बढ़ जाता है।



  • वृश्चिक संक्रांति का क्षण (प्रवेश काल) दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर

  • वृश्चिक संक्रांति पुण्य काल सुबह 08 बजकर 02 मिनट से दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक

  • अवधि: 05 घंटे 43 मिनट

  • वृश्चिक संक्रांति महा पुण्य काल दिन में 11 बजकर 58 मिनट से दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक

  • अवधि: 01 घंटा 47 मिनट


वृश्चिक संक्रांति की पूजा विधि


  • पवित्र स्नान: पुण्यकाल आरंभ होने से पूर्व किसी पवित्र नदी (जैसे गंगा, यमुना) में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

  • सूर्य को अर्घ्य: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान सूर्यदेव को तांबे के लोटे में जल, लाल फूल, अक्षत (चावल) और गुड़ मिलाकर ॐ घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें।

  • पूजा और संकल्प: सूर्यदेव की प्रतिमा या तस्वीर के सामने धूप-दीप जलाएं। अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए हाथ में जल लेकर संकल्प करें।

  • पाठ: इस दिन आदित्य हृदय स्तोत्र और सूर्य चालीसा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

  • दान: अपनी क्षमता अनुसार अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, कंबल या धन का दान किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को करें। गोदान का भी विशेष महत्व होता है।


वृश्चिक संक्रांति का महत्व

यह दिन सूर्य के तेज और ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य के वृश्चिक राशि में आने से वातावरण में सकारात्मकता बढ़ती है। शास्त्रों में कहा गया है कि संक्रांति के पुण्यकाल और महापुण्यकाल में पवित्र नदी में स्नान करने और दान करने से मनुष्य को सौ (100) यज्ञों के अनुष्ठान जितना शुभ फल प्राप्त होता है।


सूर्यदेव को आरोग्य और यश का कारक माना जाता है। इस दिन उनकी पूजा करने से कुंडली में स्थित सूर्य दोष (जैसे पितृ दोष) शांत होते हैं और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। मान्यता है कि वृश्चिक संक्रांति के दिन किया गया धर्म-कर्म मोक्ष के द्वार खोलता है और व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।