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वैकुंठ चतुर्दशी: पूजा विधि और महत्व

वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त पूजा का दिन है। इस दिन भक्त विशेष विधि से पूजा करते हैं, जिसमें बेलपत्र और तुलसी का अर्पण शामिल है। जानें इस पर्व की पूजा विधि और इसके पीछे का धार्मिक महत्व।
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वैकुंठ चतुर्दशी: पूजा विधि और महत्व

भगवान शिव और विष्णु की पूजा का दिन


वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
यह पर्व भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा का दिन है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को मनाया जाता है, जब भक्ति और शिवत्व का संगम होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और विष्णु एक-दूसरे की पूजा करते हैं।


भगवान विष्णु शिव जी को बेलपत्र अर्पित करते हैं, जबकि भगवान शिव विष्णु जी को तुलसी दल अर्पित करते हैं। इसे एकता और सौहार्द का पर्व माना जाता है। आज वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा दोपहर 2 बजे से शुरू होगी और रात 10:36 बजे समाप्त होगी। पूजा से पहले सभी आवश्यक कार्य कर लें।


पूजा विधि

इस दिन प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और उपवास का संकल्प लें। घर और मंदिर में दीपक जलाकर भगवान विष्णु और भगवान शिव का ध्यान करें। सूर्योदय से पहले शिव लिंग का जल, दूध और बेलपत्र से अभिषेक करें और ॐ नम: शिवाय का जाप करें। दिनभर भक्ति और मौन का पालन करते हुए शाम को दीपदान करें।


रात्रि के निषीथ मुहूर्त में विष्णु जी की पूजा करें, पंचामृत से अभिषेक करें, कमल पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें, साथ ही ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। इस दिन विशेष रूप से विष्णु को बेलपत्र और शिव को तुलसी अर्पित करना शुभ माना जाता है। यह दिन शिव-विष्णु एकता और मोक्ष की साधना का प्रतीक है।


कौन से पुष्प अर्पित करें?

वैकुंठ चतुर्दशी पर पुष्प अर्पण का विशेष धार्मिक महत्व है। भगवान विष्णु को कमल पुष्प, तुलसी दल, पीले या सफेद फूल समर्पित करने से वैकुंठ की कृपा प्राप्त होती है। वहीं, भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, कणेर और सफेद पुष्प चढ़ाने से भक्त को मोक्ष और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।