शनिवार को शनिदेव की कृपा पाने के लिए करें ये विशेष उपाय
शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है, जब भक्त उनकी पूजा कर मनचाही मुरादें पूरी कर सकते हैं। इस दिन विशेष मंत्रों का जाप करने से करियर और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है। जानें शनिदेव की पूजा के लाभ और मंत्रों के बारे में, जो आपको जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति दिला सकते हैं।
Sep 20, 2025, 06:10 IST
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शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित
शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। इस दिन की पूजा से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं। 20 सितंबर को आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है, जो शनिवार को आती है। इस दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है और मनचाही मुराद के लिए व्रत रखा जाता है।
व्यापार में सफलता की प्राप्ति
धार्मिक मान्यता के अनुसार, शनिदेव की पूजा करने से साधक को करियर और व्यापार में सफलता मिलती है। इसके साथ ही, जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। यदि आप शनिदेव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनिवार को भक्ति भाव से उनकी पूजा करें और निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें।
शनि देव के मंत्र
- ऊँ शं शनैश्चाराय नम:।
- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:।
- ॐ नीलाजंन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।। - अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।। - गतं पापं गतं दु: खं गतं दारिद्रय मेव च।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात्।। - ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नम:।
- ऊँ हलृशं शनिदेवाय नम:।
- ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नम:।
दशरथकृत शनि स्तोत्र
- नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥ - नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥ - नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥ - नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥ - नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥ - अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥ - तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥ - ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥ - देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥ - प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥
दशरथ उवाच
- प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम्।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्॥
शनैश्चरस्तोत्रम्
- कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रु: कृष्ण: शनि: पिंगलमन्दसौरि:।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - सुरासुरा: किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - नरा नरेन्द्रा: पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गा:।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशा: पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैलोर्हेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नर: सुखी स्यात्।
गृहाद् गतो यो न पुन: प्रयाति तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजु:साममूर्तिस्तस्मै नम: श्रीरविनन्दनाय॥ - शन्यष्टकं य: प्रयत: प्रभाते नित्यं सुपुत्रै: पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्त: प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥ - कोणस्थ: पिङ्गलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोऽन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्पलादेन संस्तुत:॥ - एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥