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शनिवार को सुंदरकांड का पाठ: हनुमान जी और शनिदेव की कृपा प्राप्त करें

इस लेख में जानें कि शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान जी और शनिदेव की कृपा कैसे प्राप्त की जा सकती है। विशेष रूप से, इस दिन के महत्व और कुछ महत्वपूर्ण दोहों के अर्थ पर चर्चा की गई है। यदि आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो इस लेख में दिए गए दोहों का पाठ अवश्य करें।
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शनिवार को सुंदरकांड का पाठ: हनुमान जी और शनिदेव की कृपा प्राप्त करें

शनिवार का महत्व और सुंदरकांड का पाठ


शनिवार और मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ
आज शनिवार है, जो कि शनिदेव को समर्पित है। इस दिन शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करना इस दिन विशेष लाभकारी माना जाता है। यदि आप शनिवार और मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ करते हैं, तो आपको हनुमान जी और शनिदेव दोनों की कृपा प्राप्त हो सकती है।


शनि देव, सूर्य देव के पुत्र हैं और इन्हें न्याय का देवता माना जाता है। यदि आप शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो शनिवार को सुंदरकांड के कुछ विशेष दोहों का पाठ करें। आइए, हम हनुमान जी के दोहों को अर्थ सहित पढ़ते हैं।


सुंदरकांड के दोहे और उनके अर्थ

दोहा और अर्थ



  • रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
    इस चौपाई में हनुमान जी सीता जी के सामने प्रभु श्री रामचंद्र जी के गुणों का वर्णन करते हैं, जिससे सीता जी के सारे दुख दूर हो जाते हैं। सीता जी मन लगाकर श्रीराम का गुणगान सुनती हैं।

  • हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम,
    राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां बिश्राम
    इस दोहे में हनुमान जी की प्रभु श्रीराम के प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाया गया है। हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को प्रणाम करते हुए कहा कि श्रीराम का कार्य किए बिना मुझे विश्राम नहीं है।

  • काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
    सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥
    इस दोहे में कहा गया है कि काम, क्रोध, मद और लोभ नरक के रास्ते हैं, इसलिए इन बुराइयों को त्यागकर भगवान श्रीराम की भक्ति करनी चाहिए।

  • प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा॥
    गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
    इस दोहे में लंका की द्वारपालिका हनुमान जी से कह रही है कि आप अयोध्या के राजा श्रीराम को हृदय में रखकर लंका में प्रवेश करें। जो भक्त श्रीराम का ध्यान करते हैं, उनके लिए विष भी अमृत के समान हो जाता है।