शारदीय नवरात्र 2025: आध्यात्मिक शक्ति और अंतःशुद्धि का पर्व
शारदीय नवरात्र 2025 एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो आध्यात्मिक शक्ति और अंतःशुद्धि का प्रतीक है। इस दौरान देवी दुर्गा की आराधना की जाती है, जो मानव के अंतःकरण में विद्यमान शक्ति का प्रतीक है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाता है, बल्कि शरीर और मन को संतुलित करने का भी संदेश देता है। जानें इस पर्व के महत्व और साधना के तरीकों के बारे में।
Sep 22, 2025, 14:19 IST
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शारदीय नवरात्र का महत्व
आचार्य दीप चन्द भारद्वाज, शारदीय नवरात्र 2025: हमारी प्राचीन संस्कृति में साल में चार बार नवरात्र मनाने की परंपरा है। इनमें से दो बार गुप्त नवरात्र होते हैं। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक और आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विजयदशमी तक। आश्विन में आने वाले नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है, क्योंकि यह शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, दुर्गा देवी ने आश्विन में महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया। इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस दौरान उपासक आदिशक्ति की दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में पूजा करते हैं।
आदिशक्ति के ये तीन रूप मानव के अंतःकरण में विद्यमान शक्ति, पुरुषार्थ, धन और ज्ञान के प्रतीक हैं। देवी दुर्गा का स्वरूप हमारी आंतरिक चेतना में बसा हुआ है। हमारे ऋषियों ने कहा है कि जो देवी हर प्राणी में शक्ति और पराक्रम के रूप में विद्यमान है, उसे नमस्कार है।
नवरात्रि वास्तव में अंतःशुद्धि का पर्व है। यह शरीर, जो प्रकृति के पांच तत्वों से बना है, को इन नौ दिनों में संतुलन स्थापित करने का संदेश देता है। ऋतु परिवर्तन का प्रभाव हमारे शरीर पर भी पड़ता है, इसलिए ऋषियों ने इन दिनों में व्रत और उपवास का विधान रखा है। इससे शरीर में सात्विक गुणों का संचार होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य का अंतःकरण सत्व, रजो और तमोगुण से बना है। नवरात्र का उत्सव इसी आंतरिक चेतना को साधने और आध्यात्मिक उत्थान का माध्यम है। हमारे पर्व हमें प्रकृति और ऋतु परिवर्तन के साथ जोड़ते हैं। मनुष्य सांसारिक प्राणी है, इसलिए उसके मन में तामसिक विचारों का प्रभाव पड़ता है, जिससे वह भक्ति और उपासना से भटक जाता है।
आदिशक्ति की उपासना और साधना संयम के साथ की जाने पर आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होती है। जैसे एक शिशु अपनी मां के गर्भ में नौ महीने रहकर पुष्ट होता है, वैसे ही यह नौ दिन भी हमें अपनी आंतरिक सृजनता को उत्कृष्ट बनाने का संदेश देते हैं।
शारदीय नवरात्र आदिशक्ति दुर्गा की उपासना के माध्यम से आत्मिक उत्थान का समय है। यम, नियम और संयम के साथ सात्विक आहार लेकर आत्मिक आनंद का अनुभव करना चाहिए। इस दौरान की गई साधना भौतिक सुख और आत्मिक आनंद दोनों का अनुभव कराती है।