शुक्र प्रदोष व्रत: शिव लिंगाष्टकम का पाठ से प्राप्त करें स्वास्थ्य और समृद्धि

शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व
शुक्र प्रदोष व्रत: शिव लिंगाष्टकम का पाठ से प्राप्त करें स्वास्थ्य और समृद्धि: नई दिल्ली: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, और जब यह व्रत शुक्रवार को आता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस अवसर पर शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यदि आप इस व्रत को रखने का विचार कर रहे हैं, तो आइए इसके महत्व और शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र के हिंदी लिरिक्स के बारे में जानते हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व
शुक्र प्रदोष व्रत हर महीने त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन जब यह शुक्रवार को पड़ता है, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन भक्त भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करते हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को रखने और शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के दुख, बीमारियां और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है और इसे पढ़ने से मन को शांति और आत्मा को पवित्रता मिलती है।
शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र (हिंदी लिरिक्स)
शिव लिंगाष्टकम स्तोत्र भगवान शिव के लिंग रूप की स्तुति करता है। इस पाठ को शुक्र प्रदोष व्रत के दौरान पढ़ने से विशेष फल प्राप्त होता है। नीचे इसके हिंदी लिरिक्स दिए गए हैं:
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभित लिंगम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम्।
रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥
सर्वसुगंधिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम्।
सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥४॥
कुंकुमचंदनलेपितलिंगं पंकजहारसुशोभितलिंगम्।
संचितपापविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥५॥
देवगाणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्ठित लिंगं सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्।
अष्टदरिद्रविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगं सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्।
परात्परं परमात्मकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥८॥
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥९॥
इति श्रीलिंगाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥