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श्राद्ध और पिंडदान: पितरों के कल्याण का अनमोल साधन

श्राद्ध और पिंडदान का महत्व केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के कल्याण का एक महत्वपूर्ण साधन है। संत प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर गहराई से प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे ये अनुष्ठान हमारी भावनाओं की शुद्धि और पितरों के मंगल का साधन बनते हैं। जानें कि श्राद्ध का कर्तव्य क्यों महत्वपूर्ण है और इसका प्रभाव 21 पीढ़ियों तक कैसे पहुंचता है।
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श्राद्ध और पिंडदान: पितरों के कल्याण का अनमोल साधन

श्राद्ध का महत्व

प्रेमानंद जी महाराज: श्राद्ध का उद्देश्य अपने पूर्वजों के कल्याण और मुक्ति के लिए विशेष पूजा और पिंडदान करना है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्राद्ध की आवश्यकता क्यों होती है? संत प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर गहराई से विचार करते हुए बताया कि श्राद्ध और पिंडदान केवल एक परंपरा नहीं हैं, बल्कि यह हमारी भावनाओं की शुद्धि और पितरों के कल्याण का एक साधन है।

महाराज जी का मानना है कि हमारे माता-पिता ने जीवनभर हमारा पालन-पोषण किया। जब वे इस संसार में नहीं रहते, तब भी हमारा उनसे संबंध समाप्त नहीं होता। इसलिए, उनका कल्याण करना हमारा कर्तव्य बन जाता है।


श्राद्ध और पिंडदान का असली उद्देश्य

श्राद्ध और पिंडदान का असली उद्देश्य

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, पिंडदान और श्राद्ध हमारी भावनाओं की शुद्धि के लिए आवश्यक हैं। यदि माता-पिता अब जीवित नहीं हैं, तो भी उनका हमसे संबंध बना रहता है। भजन, दान, पुण्य और पिंडदान से उनके कल्याण में वृद्धि होती है। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि यदि पितृ किसी कर्म के दंड विभाग में भी हों, तो संतान द्वारा किए गए भजन-कीर्तन, दान और तीर्थयात्रा उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।


पुत्र का कर्तव्य श्राद्ध करना

पुत्र का कर्तव्य क्यों है श्राद्ध करना?

महाराज जी के अनुसार, श्राद्ध केवल माता-पिता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पितामह और पूर्वजों की पीढ़ियों का भी कल्याण करता है। उन्होंने कहा कि पुत्र अपने पिता से पहले पितामह की पीढ़ियों को भी स्वर्ग प्रदान कर सकता है। श्राद्ध करना कर्तव्य का निर्वाह है। यदि संतान ऐसा नहीं करती, तो इसे कर्तव्यहीनता माना जाता है। गया जैसे तीर्थों पर पिंडदान करने से पितरों को गति मिलती है और उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है।


21 पीढ़ियों तक असर

21 पीढ़ियों तक होता है असर

प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि श्राद्ध और पिंडदान केवल निकट संबंधियों तक सीमित नहीं होते। जब कोई संकल्प करता है, तो उसका प्रभाव 21 पीढ़ियों तक जाता है और इससे पितरों को परम पद प्राप्त होता है। महाराज जी ने स्वप्न का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे हम स्वप्न देखते समय अपने जाग्रत जीवन को भूल जाते हैं, वैसे ही पितृ जिस लोक में भी जाते हैं, वहां की स्थिति के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं। लेकिन संतान द्वारा किया गया पुण्यकर्म उनका मार्ग अवश्य प्रशस्त करता है।