श्राद्ध के नियम 2025: पितृपक्ष में पालन करने योग्य महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश

श्राद्ध के महत्व और समय
श्राद्ध नियम 2025, सिटी रिपोर्टर | नई दिल्ली : पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन अमावस्या तक चलता है। इस वर्ष 2025 में यह 15 दिन का पवित्र समय 7 सितंबर से 21 सितंबर तक रहेगा।
पितरों की कृपा पाने के लिए श्राद्ध के नियम
इस दौरान अपने पितरों को प्रसन्न करने का अवसर मिलता है। श्राद्ध करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि भी आती है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। हालांकि, श्राद्ध के कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है, अन्यथा पितृ दोष का खतरा हो सकता है। आइए, जानते हैं श्राद्ध के 10 महत्वपूर्ण नियम।
श्राद्ध के 10 आवश्यक नियम
पितृपक्ष में श्राद्ध करने के लिए कुछ खास नियमों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है ताकि पितरों को पूरा फल मिले और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहे।
सही समय और पक्ष का ध्यान
श्राद्ध हमेशा कृष्ण पक्ष में करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपराह्न का समय श्राद्ध और तर्पण के लिए सबसे शुभ माना जाता है। पूर्वाह्न, शुक्ल पक्ष या अपने जन्मदिन के दिन श्राद्ध करने से बचें, क्योंकि ऐसा करने से इसका फल नहीं मिलता। साथ ही, सूर्यास्त के समय या रात में श्राद्ध करना भी वर्जित है, क्योंकि इसे राक्षसी बेला कहा जाता है और इस दौरान किए गए श्राद्ध का कोई पुण्य नहीं मिलता।
सही स्थान का चयन
श्राद्ध कभी भी दूसरों की जमीन पर नहीं करना चाहिए। यदि अपने घर या जमीन पर श्राद्ध करना संभव न हो, तो किसी मंदिर, तीर्थ स्थल, नदी किनारे या जंगल में श्राद्ध करें। ये पवित्र स्थान पितरों के लिए शुभ माने जाते हैं।
ब्राह्मणों का सम्मान
श्राद्ध के लिए कम से कम एक या तीन ब्राह्मणों को आमंत्रित करना चाहिए। उन्हें श्रद्धा और आदर के साथ भोजन कराएं। भोजन या दान देते समय किसी तरह का अभिमान नहीं दिखाना चाहिए। ब्राह्मणों को मौन रहकर भोजन ग्रहण करना चाहिए, और उन्हें व्यंजनों की प्रशंसा या श्राद्ध करवाने वाले की तारीफ से बचना चाहिए।
दोस्तों को न बुलाएं
श्राद्ध के भोजन में किसी दोस्त को आमंत्रित नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से श्राद्ध का पुण्य नष्ट हो जाता है। यह समय केवल पितरों और ब्राह्मणों के लिए समर्पित होता है।
पितृपक्ष की तारीखें
पितृपक्ष 7 सितंबर 2025, रविवार को शुरू होगा और 21 सितंबर 2025, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। यह 15 दिन का समय पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और कर्तव्य निभाने का सुनहरा अवसर है।
भोजन और दान के नियम
श्राद्ध का भोजन बनाते समय गाय के घी और दूध का इस्तेमाल करें। भोजन बनाते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन बनाना अशुभ माना जाता है। साथ ही, श्राद्ध के भोजन में गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों के लिए भी हिस्सा निकालना चाहिए। यह कार्य कुतपकाल में करना सबसे पुण्यदायी होता है।