श्री बांके बिहारी मंदिर में भोग सेवा में बाधा: भक्तों की चिंता बढ़ी
मंदिर में भोग सेवा में असामान्य स्थिति
सोमवार को वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर में एक अप्रत्याशित घटना घटी, जिसने भक्तों और सेवायतों को चौंका दिया। मंदिर में वर्षों से चली आ रही परंपरा के विपरीत, उस दिन ठाकुर जी को सुबह का बाल भोग और रात का शयन भोग अर्पित नहीं किया जा सका। यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भोग सेवा को ईश्वर की दैनिक पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है।
भोग अर्पण की प्रक्रिया
श्री बांके बिहारी मंदिर में प्रतिदिन चार समय भोग अर्पित करने की परंपरा है: बाल भोग सुबह, राजभोग दोपहर में, उत्थापन भोग संध्या आरती से पहले, और शयन भोग रात में। लाखों श्रद्धालु दर्शन के साथ-साथ भोग प्रसाद की भी प्रतीक्षा करते हैं। सोमवार को बाल भोग और शयन भोग न लग पाने से यह क्रम अधूरा रह गया।
भोग न लगने का कारण
इस मामले की जानकारी सामने आने के बाद, मंदिर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मंदिर प्रबंधन के लिए गठित हाई पावर्ड कमेटी ने भोग निर्माण हेतु एक हलवाई की नियुक्ति की थी, जिसे लगभग 80 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाना तय था। सूत्रों के अनुसार, कई महीनों से हलवाई को वेतन नहीं मिला था। लगातार अनुरोध के बावजूद भुगतान न होने के कारण उसने भोग तैयार नहीं किया, जिससे ठाकुर जी को दो समय का भोग अर्पित नहीं हो सका।
हलवाई की शिकायतें
मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है कि हलवाई ने वेतन भुगतान को लेकर संबंधित अधिकारियों और भोग व्यवस्था देखने वाले प्रतिनिधि को कई बार अवगत कराया था। इसके बावजूद समस्या का समाधान नहीं हो पाया, जिसका असर सीधे पूजा व्यवस्था पर पड़ा।
भोग प्रबंधन की जिम्मेदारी
हाई पावर्ड कमेटी के अनुसार, मंदिर में भोग और प्रसाद व्यवस्था की जिम्मेदारी मयंक गुप्ता को सौंपी गई है। वे हलवाई के माध्यम से दिन भर के भोग की व्यवस्था करते हैं। सोमवार को जब सेवायतों को अर्पण के लिए भोग उपलब्ध नहीं हुआ, तब मामले की जांच शुरू की गई। पूछताछ के दौरान भुगतान न होने की बात सामने आई, जिसके बाद तत्काल भुगतान के निर्देश जारी किए गए।
मंदिर प्रबंधन का बयान
हाई पावर्ड कमेटी ने स्वीकार किया कि सूचना मिलने में देरी हुई। कमेटी की ओर से कहा गया है कि बकाया वेतन शीघ्र दिया जाएगा और भविष्य में भुगतान में देरी न हो, इसके लिए नई व्यवस्था बनाई जाएगी। भोग सेवा में किसी भी तरह की बाधा न आए, यह प्राथमिकता रहेगी।
सेवायतों और भक्तों की प्रतिक्रिया
मंदिर के सेवायतों का कहना है कि भोग ठाकुर जी का अधिकार है, इसे किसी भी प्रशासनिक या वित्तीय कारण से रोका नहीं जाना चाहिए। दर्शन के लिए आए भक्तों में भी निराशा देखने को मिली। कई श्रद्धालुओं ने कहा कि भोग न लगना शुभ संकेत नहीं माना जाता और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
महत्वपूर्णता का विश्लेषण
बांके बिहारी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और व्यवस्था का प्रतीक है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक लापरवाही का असर धार्मिक परंपराओं पर भी पड़ सकता है। आने वाले दिनों में भक्तों और सेवायतों की नजर इस पर रहेगी कि मंदिर प्रबंधन इस तरह की स्थिति दोबारा न बनने दे।
