श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर 56 भोग का महत्व और कथा

श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप और भोग की तैयारी
नई दिल्ली: जब भक्त श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की कल्पना करते हैं, तो उनके मन में एक अद्भुत आनंद का अनुभव होता है। उनके जन्मदिन के खास मौके पर, हर घर में विशेष तैयारियां शुरू होती हैं। झूला सजाया जाता है, शंखनाद किया जाता है, और लड्डू गोपाल के स्वागत के लिए 56 भोग बनाए जाते हैं। इन भोगों के पीछे एक प्रसिद्ध लोककथा है, जो भगवान श्रीकृष्ण के बचपन से जुड़ी हुई है।
लोककथा का सार
कथा के अनुसार, एक बार सभी बृजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा की तैयारी कर रहे थे। कान्हा जी ने नंद बाबा से पूछा कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं। नंद बाबा ने बताया कि इंद्रदेव की कृपा से ही वर्षा होगी। इस पर कान्हा ने कहा कि हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यह पर्वत ही हमें फल, सब्जियां और चारा प्रदान करता है।
इंद्रदेव का क्रोध और कृष्ण की रक्षा
कृष्ण की बात सुनकर सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे, जिससे इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने भारी बारिश शुरू कर दी। बृजवासियों की रक्षा के लिए, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया, और सभी ने पर्वत के नीचे शरण ली।
कृष्ण का बलिदान और 56 भोग की परंपरा
कथा के अनुसार, कृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाए रखा। जब इंद्रदेव ने कृष्ण के दिव्य स्वरूप को देखा, तो उन्होंने माफी मांगी और बारिश रोक दी। इन 7 दिनों में, मां यशोदा ने अपने बेटे के लिए 56 भोग तैयार किए, क्योंकि वह अपने लाल को हर दिन आठ बार भोजन कराती थीं। इस प्रकार, 7 दिनों के लिए 8 बार भोजन मिलाकर 56 भोग तैयार किए गए। इस घटना के बाद से कान्हा को छप्पन भोग चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
छप्पन भोग का अर्थ
छप्पन भोग का अर्थ है 56 प्रकार के व्यंजन, जो विभिन्न स्वादों और भावनाओं का समावेश करते हैं। ये व्यंजन 6 स्वादों को मिलाकर बनाए जाते हैं: मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा और कसैला।