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संत कबीर जयंती 2025: कबीर दास के अमर दोहे और उनका महत्व

संत कबीर जयंती 2025 के अवसर पर, जानें कबीर दास के अमर दोहे और उनके जीवन के गूढ़ संदेश। कबीर ने भक्ति को सरल बनाया और समाज में सुधार का मार्ग दिखाया। उनके दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। इस लेख में हम कबीर के 10 प्रेरणादायक दोहों के अर्थ और उनके महत्व पर चर्चा करेंगे। कबीर की शिक्षाएं हमें जीवन में सादगी और प्रेम अपनाने की प्रेरणा देती हैं।
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संत कबीर जयंती 2025: कबीर दास के अमर दोहे और उनका महत्व

संत कबीर जयंती 2025: कबीर दास के दोहे

Sant Kabir Jayanti 2025: कबीर दास के दोहे और उनके अर्थ: संत कबीर जयंती 2025 (Sant Kabir Jayanti 2025) नजदीक है, और यह अवसर हमें संत कबीर दास के अनमोल विचारों से परिचित कराता है, जो उनके दोहों में समाहित हैं। ये दोहे केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने वाले गूढ़ संदेश हैं। कबीर, एक महान कवि, संत और समाज सुधारक, ने अपने समय में समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया और भक्ति का सरल मार्ग दिखाया। उनके दोहे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। आइए, इस विशेष अवसर पर संत कबीर जयंती के महत्व और उनके 10 अमर दोहों के बारे में जानते हैं, जो आपके दिल को छू लेंगे और आपके जीवन को बदल देंगे!


कबीर दास के दोहे


“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर॥”


अर्थ: वर्षों तक माला फेरने से भी मन नहीं बदला। बाहरी मनकों को छोड़कर अपने अंदर के मन को बदलो।


“जहां दया तहां धर्म है, जहां लोभ तहां पाप।
जहां क्रोध तहां काल है, जहां क्षमा तहां आप॥”


अर्थ: जहां दया है, वहीं धर्म है; जहां लालच है, वहीं पाप है; जहां क्रोध है, वहां मृत्यु है; और जहां क्षमा है, वहीं परमात्मा है।


“निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥”


अर्थ: आलोचक को अपने पास रखना चाहिए, क्योंकि वह बिना साबुन और पानी के ही हमारे स्वभाव को साफ कर देता है।


संत कबीर जयंती: कब और क्यों मनाई जाती है?


संत कबीर जयंती (Sant Kabir Jayanti) हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो 2025 में जून के अंत या जुलाई की शुरुआत में आएगी। इस दिन भक्त मठों, मंदिरों और सत्संगों में इकट्ठा होते हैं। कबीर के दोहों का पाठ, कीर्तन और भक्ति गीत गाए जाते हैं। यह दिन कबीर की शिक्षाओं को याद करने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का है। यह अवसर हमें उनके विचारों से प्रेरणा लेने और जीवन में सादगी अपनाने का मौका देता है।


संत कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे


“दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय॥”


अर्थ: लोग दुख में भगवान को याद करते हैं, सुख में नहीं। यदि वे सुख में भी सुमिरन करें तो दुख आए ही क्यों?


“साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय॥”


अर्थ: सच्चा साधु वही है जो सूप की तरह सार को ग्रहण करे और निरर्थक चीज़ों को उड़ा दे।


कबीर के दोहों का जादू


कबीर के दोहे कम शब्दों में गहरी बात कहने की कला के मास्टर हैं। चाहे सत्य की खोज हो, भक्ति की गहराई हो, या समाज की कुरीतियों की बात हो, कबीर ने हर मुद्दे को बेबाकी से उठाया। उनके दोहे आपको सोचने पर मजबूर करते हैं। जैसे, “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय…” यह दोहा हमें सिखाता है कि बुराई दूसरों में नहीं, अपने मन में ढूंढनी चाहिए। ऐसे दोहे आज भी समाज सुधार का संदेश देते हैं।


Sant Kabir Das Ke Dohe


“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय ॥”


अर्थ: ऐसी भाषा बोलें कि आपकी वाणी सुनने वाले को शीतलता दे और स्वयं भी सुकून का अनुभव हो।


“जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ॥”


अर्थ: जो लोग गहराई तक प्रयास करते हैं, उन्हें सफलता मिलती है; वहीं जो डर के कारण किनारे ही रहें, वे कुछ नहीं पाते।


“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥”


अर्थ: जब मैं संसार में बुराई खोजने चला तो कोई बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने दिल में झाँका, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं।


“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥”


भक्ति और सादगी का संदेश


कबीर ने भक्ति को जटिल रीति-रिवाजों से मुक्त किया। उन्होंने बताया कि ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि आपके दिल में बसता है। उनके दोहे जैसे “मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में…” हमें सिखाते हैं कि भगवान को पाने के लिए सच्ची भक्ति ही काफी है। संत कबीर जयंती 2025 पर उनके इस संदेश को अपनाएं और अपने जीवन को सादगी और प्रेम से भरें।


समाज सुधार के प्रतीक


कबीर ने जात-पात, छुआछूत और धार्मिक आडंबरों का खुलकर विरोध किया। उनके दोहे समाज को एकता का पाठ पढ़ाते हैं। “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान…” जैसे दोहे आज भी हमें इंसानियत और समानता की सीख देते हैं। संत कबीर जयंती 2025 पर उनके इस दर्शन को अपनाकर हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।


आज भी प्रासंगिक हैं कबीर


कबीर के दोहे समय की सीमाओं को तोड़ते हैं। चाहे आत्मचिंतन की बात हो, नैतिकता की या सामाजिक सुधार की, उनके शब्द आज भी उतने ही प्रभावशाली हैं। संत कबीर जयंती 2025 पर उनके दोहों को पढ़ें, समझें और अपने जीवन में उतारें। ये दोहे न केवल आपको प्रेरित करेंगे, बल्कि आपके जीवन को नई दिशा भी देंगे।