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सावन का अंतिम सोमवार: शिव पूजा के लिए शुभ मुहूर्त और विधि

सावन का अंतिम सोमवार 4 अगस्त 2025 को है, जो भगवान शिव की कृपा पाने का अंतिम अवसर है। इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से इच्छाएं पूरी होती हैं। जानें इस दिन के लिए शुभ मुहूर्त, जलाभिषेक और रुद्राभिषेक की विधि। विशेष संयोग और पूजा विधि के बारे में जानकारी प्राप्त करें और इस पवित्र दिन का लाभ उठाएं।
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सावन का अंतिम सोमवार: शिव पूजा के लिए शुभ मुहूर्त और विधि

सावन का आखिरी सोमवार और उसकी महत्ता

नई दिल्ली - सावन का अंतिम सोमवार व्रत का दिन नजदीक है। मान्यता है कि इस महीने महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त होता है। शिवभक्त इस पूरे महीने भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिसमें जलाभिषेक और रुद्राभिषेक शामिल हैं।


सावन मास का विवरण

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष सावन का महीना 29 दिनों का है, जिसमें चार विशेष सोमवार हैं। इनमें से तीन बीत चुके हैं और अंतिम सोमवार 4 अगस्त 2025 को आएगा। यह भगवान शिव की कृपा पाने का अंतिम अवसर है। आइए जानते हैं कि इस दिन कौन से शुभ संयोग बन रहे हैं और पूजा के लिए कौन से मुहूर्त हैं।


चौथे सावन सोमवार के शुभ संयोग और मुहूर्त

शुभ मुहूर्त:
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:20 से 5:02 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:54 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:41 से 3:35 बजे तक
निशीथ काल: रात 12:06 से 12:48 बजे तक
अमृत काल: 4-5 अगस्त की मध्यरात्रि 1:47 से 3:32 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 5:44 से 9:12 बजे तक
रवि योग: पूरे दिन


जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के लिए शुभ समय

सावन सोमवार पर भगवान शिव के जलाभिषेक और रुद्राभिषेक के लिए ब्रह्म मुहूर्त, प्रदोष काल और अमृत काल सर्वोत्तम माने जाते हैं। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:21 से 5:03 बजे तक रहेगा। प्रदोष काल शाम 7:10 से 8:14 बजे तक और अमृत काल 4 अगस्त को तड़के 1:47 से 3:32 बजे तक रहेगा।


पूजन विधि

4 अगस्त को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और हरे रंग के वस्त्र पहनें, जो भगवान शिव और माता पार्वती को प्रिय हैं। इसके बाद शांत मन से भगवान शिव के सामने बैठें, हाथ में फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। शिवलिंग पर पंचामृत से जलाभिषेक करें और इस दौरान पंचाक्षर मंत्र (ऊँ नम शिवाय) का जाप करें। फिर पुष्प, धतूरा, भांग, बेलपत्र, फल और मिठाई अर्पित करें। भगवान शिव से क्षमा मांगें और अपनी इच्छाएं व्यक्त करें। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें और द्वेष से दूर रहें।