सावन में महादेव का रहस्य: भस्म, चंद्रमा और गंगा का महत्व

महादेव का पवित्र सावन महीना
नई दिल्ली - सावन का पवित्र महीना, जो विश्व के नाथ महादेव को समर्पित है, 11 जुलाई से प्रारंभ होने जा रहा है। यह महीना शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। शिवालयों में भक्तों की लंबी कतारें और 'बोल बम' तथा 'हर हर महादेव' की गूंज सुनाई देगी। भोलेनाथ का स्वरूप अद्भुत है, और उनके शरीर पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटा में गंगा और गले में नागदेव की उपस्थिति के पीछे गहरा अर्थ छिपा है।
भस्म, चंद्रमा, गंगा और नागदेव का यह स्वरूप भक्तों में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। पौराणिक ग्रंथों में इन प्रतीकों का अर्थ स्पष्ट किया गया है। महादेव को 'भस्मभूषित' कहा जाता है, क्योंकि वह अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। शिव पुराण के अनुसार, भस्म महादेव को प्रिय है, जो वैराग्य और नश्वरता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि संसार क्षणिक है और आत्मा शाश्वत है। शिव का संदेश है कि सांसारिक मोह को छोड़कर आत्मिक शांति की ओर बढ़ना चाहिए। भस्म में औषधीय गुण भी होते हैं, जो नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने क्रोध में आकर आत्मदाह किया, तब महादेव ने उनके शव को लेकर हर जगह भ्रमण किया। विष्णु जी ने उनकी स्थिति को देखकर माता सती के शव को भस्म में बदल दिया। इस भस्म को देखकर महादेव ने इसे अपने शरीर पर मल लिया। धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि महादेव कैलाश पर्वत पर निवास करते थे, जहां ठंड होती थी, इसलिए वह भस्म का उपयोग करते थे।
महादेव को 'चंद्रशेखर' भी कहा जाता है, क्योंकि उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है। भागवत पुराण के अनुसार, चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों से विवाह किया, लेकिन रोहिणी को प्राथमिकता दी, जिसके कारण दक्ष ने उन्हें श्राप दिया। चंद्रमा ने शिव की तपस्या की, जिससे शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर स्थान दिया।
महादेव की जटाओं में गंगा का वास है, इसलिए उन्हें 'गंगाधर' कहा जाता है। हरिवंश पुराण के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं, तो शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया। नागराज वासुकी उनके गले में विराजमान हैं, इसलिए उन्हें 'नागेंद्रहार' भी कहा जाता है। समुद्र मंथन के समय वासुकी ने शिव के प्रति भक्ति दिखाई, जिसके फलस्वरूप शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया।