सोम प्रदोष व्रत कथा: पूजा का महत्व और कथा का पाठ
भगवान शिव की पूजा का फल
सोम प्रदोष व्रत की पूजा का महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन विधिपूर्वक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। इस कथा के पाठ से जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
प्रदोष व्रत का समय
प्रदोष व्रत हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन के अनुसार व्रत का नामकरण किया जाता है। आज सोमवार है, इसलिए इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
कथा का पाठ अनिवार्य
भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी दुख दूर होते हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इससे जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
सोम प्रदोष व्रत से जुड़ी एक प्राचीन कथा है। एक बार एक ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ भिक्षा मांगकर जीवन यापन कर रही थी। उसके पति का निधन हो चुका था। ब्राह्मणी हमेशा प्रदोष का व्रत करती थी। एक दिन, जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, उसने एक घायल युवक को देखा और उसे अपने घर ले आई। यह युवक विदर्भ राज्य का राजकुमार था।
राजकुमार ने ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ रहने का निर्णय लिया। एक गंदर्भ कन्या, जिसका नाम अंशुमति था, ने राजकुमार पर मोहित होकर अपने माता-पिता को बताया। भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार से करें।
इसके बाद अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार से विवाह कर दिया। राजकुमार ने गंदर्भ राजा के सहयोग से अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। अंततः, राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपने राज्य का राजकुमार बना दिया। यह सब ब्राह्मणी द्वारा किए गए प्रदोष व्रत के प्रभाव से हुआ।
