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सोम प्रदोष व्रत की कथा और महत्व

सोम प्रदोष व्रत, जो 3 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा, स्वास्थ्य, वैवाहिक सुख और मानसिक शांति का वरदान देता है। इस व्रत की कथा एक ब्राह्मणी की है, जिसने कठिनाइयों के बावजूद भगवान शिव की भक्ति नहीं छोड़ी। कथा में राजकुमार और गंधर्व कन्या का प्रेम भी शामिल है, जो प्रदोष व्रत के पुण्य से संभव हुआ। जानें इस व्रत के लाभ और इसे कैसे करना है, ताकि आप भी शिव जी की कृपा प्राप्त कर सकें।
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सोम प्रदोष व्रत की कथा और महत्व

सोम प्रदोष व्रत कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा: 3 नवंबर 2025, सोमवार को कार्तिक माह का अंतिम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत त्रयोदशी के दिन आता है और इसे करने से स्वास्थ्य, वैवाहिक सुख और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। प्रदोष काल (शाम 5:30 से 6:30 बजे) में पूजा करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।


कहा जाता है कि इस दिन प्रदोष व्रत करने और कथा सुनने से सभी प्रकार के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। इस व्रत से व्यक्ति को धन, यश और वैभव की प्राप्ति होती है।


प्रदोष व्रत की कथा

प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी अपने छोटे बेटे के साथ एक छोटे से गांव में रहती थी। उसके पति का निधन हो चुका था और उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी। वह रोज सुबह अपने बेटे को गोद में लेकर भिक्षा मांगने निकलती थी।


लोग उसे थोड़ा-बहुत अनाज या फल देते थे, जिससे उनका गुजारा चलता था। कठिनाइयों के बावजूद, ब्राह्मणी की भगवान शिव के प्रति भक्ति अटूट थी। हर महीने की त्रयोदशी को वह प्रदोष व्रत करती थी। सुबह स्नान कर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाती और शाम को प्रदोष काल में ॐ नमः शिवाय का जाप करती थी। वह प्रार्थना करती थी, 'हे भोलेनाथ, मेरे बेटे को सुख दो, मेरे दुख हर लो।'


ब्राह्मणी और राजकुमार की मुलाकात

एक दिन, जब ब्राह्मणी भिक्षा लेकर लौट रही थी, उसने एक घायल युवक को देखा। वह बेहोश था और उसके शरीर पर घाव थे। ब्राह्मणी का दिल पसीज गया। उसने युवक को उठाया और अपने घर ले आई।


अपने बेटे की मदद से उसने युवक के घावों को धोया और दूध पिलाया। धीरे-धीरे युवक होश में आया और बताया कि वह विदर्भ राज्य का राजकुमार है। ब्राह्मणी ने कहा, 'अब तुम मेरे घर में हो। मैं तुम्हारी मां हूं।' राजकुमार ने ब्राह्मणी की सेवा और उसकी शिव भक्ति को देखा और वह भी प्रदोष व्रत में शामिल होने लगा।


गंधर्व कन्या का प्रेम

कुछ समय बाद, गंधर्व लोक की राजकुमारी अंशुमति पृथ्वी पर घूमने आई। उसने राजकुमार को देखा और उसकी बहादुरी और ब्राह्मणी की सेवा से मोहित हो गई। उसने अपने माता-पिता से कहा कि वह उसी राजकुमार से विवाह करना चाहती है।


गंधर्व राजा-रानी चिंतित हुए, लेकिन उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, 'हे गंधर्व राज, तुम्हारी पुत्री की इच्छा सच्ची है। वह राजकुमार ब्राह्मणी की सेवा और प्रदोष व्रत के पुण्य से मिला है। उसका विवाह कराओ।'


विवाह और समृद्धि

भगवान शिव की आज्ञा से अंशुमति और राजकुमार का भव्य विवाह हुआ। राजकुमार ने गंधर्व सेना की मदद से दुश्मनों पर हमला किया, अपने पिता को मुक्त किया और राज्य वापस पाया। अब वह एक शक्तिशाली राजा बन गया।


राजकुमार ने ब्राह्मणी और उसके बेटे को याद किया और उन्हें राज्य में बुलाया। ब्राह्मणी को राजमाता का सम्मान मिला और उसके बेटे को उच्च पद पर नियुक्त किया गया। ब्राह्मणी के घर में धन-धान्य और वैभव आ गया। उसने शिव जी से कहा, 'हे भोले, तुमने मेरी भिक्षा को राजवैभव बना दिया।'


प्रदोष व्रत के लाभ

यह कथा प्रदर्शित करती है कि प्रदोष व्रत की शक्ति अपार है। ब्राह्मणी ने गरीबी में भी व्रत नहीं छोड़ा और शिव जी ने उसे राजमाता बना दिया।


राजकुमार को राज्य, गंधर्व कन्या को प्रेम – सब प्रदोष पुण्य से मिला। इस व्रत को करने और कथा को सुनने या पढ़ने से गरीबी दूर होती है, धन-सम्मान मिलता है। संकट नाश होता है, शत्रु पर विजय मिलती है। विवाह सुख मिलता है और इच्छित जीवनसाथी प्राप्त होता है। सोम-प्रदोष विशेष चंद्र दोष, मानसिक रोग और वैवाहिक कलह को दूर करता है।


सोम-प्रदोष व्रत कैसे करें?

सुबह स्नान करें और शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं। शाम प्रदोष काल (5:30-6:30) में रुद्राभिषेक करें। ॐ नमः शिवाय 108 बार जपें। बेलपत्र, धतूरा, दूध चढ़ाएं। कथा पढ़ें और आरती करें। फलाहार करें और रात को पारण करें।