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स्कंद षष्ठी: भगवान कार्तिकेय की पूजा का महत्व और विधि

स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान कार्तिकेय को समर्पित है, जो संतान सुख, सुख-शांति और रोगों से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विशेष पूजा विधि से व्रत करने से मनोवांछित लाभ प्राप्त होता है। जानें इस पर्व की तिथि, पूजा विधि और महत्व के बारे में।
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स्कंद षष्ठी: भगवान कार्तिकेय की पूजा का महत्व और विधि

स्कंद षष्ठी का महत्व

नई दिल्ली: सोमवार को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाएगा, जो भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से संतान प्राप्ति, सुख, शांति और रोगों से मुक्ति का लाभ मिलता है। विशेष पूजा विधि से इस दिन मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।


तिथि और समय

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 30 जून को सुबह 9:23 बजे तक रहेगी। इसके बाद षष्ठी तिथि का आरंभ होगा। इस दिन सूर्य देव मिथुन राशि में और चंद्रमा सिंह राशि में स्थित रहेंगे। अभिजीत मुहूर्त 11:57 बजे से 12:53 बजे तक रहेगा, जबकि राहूकाल 7:11 बजे से 8:56 बजे तक रहेगा।


स्कंद षष्ठी का इतिहास

स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने इसी दिन तारकासुर नामक दैत्य का वध किया था, जिसके उपलक्ष्य में इस तिथि को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। देवताओं ने इस विजय की खुशी में इस उत्सव का आयोजन किया।


व्रत की विधि

जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। व्रत आरंभ करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें, फिर पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। इसके बाद भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को लाल कपड़े पर स्थापित करें।


पूजा सामग्री

व्रत के दौरान भगवान कार्तिकेय को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। चंपा का फूल भगवान कार्तिकेय का प्रिय है, इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी और चंपा षष्ठी भी कहा जाता है।


आरती और मंत्र

भगवान कार्तिकेय की आरती करने के बाद तीन बार परिक्रमा करें और “ॐ स्कन्द शिवाय नमः” मंत्र का जाप करें। इसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।