स्कंद षष्ठी व्रत कथा: भगवान कार्तिकेय की विजय की महिमा
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
स्कंद षष्ठी व्रत कथा: स्कंद षष्ठी को हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय की उस महान विजय को समर्पित है, जब उन्होंने दुष्ट दैत्य तारकासुर का वध कर तीनों लोकों को संकट से मुक्त किया। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत करने और कथा सुनने से भय, रोग और संकट दूर होते हैं।
तारकासुर का आतंक और वरदान
कथा के अनुसार, दैत्य राज तारकासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे यह वरदान प्राप्त किया कि उसका वध केवल शिवजी के पुत्र के हाथों ही होगा।
तारकासुर को यह विश्वास था कि माता सती के देह-त्याग के बाद शिवजी संसार से विरक्त होकर समाधि में लीन हो चुके हैं, इसलिए उनके पुत्र का जन्म असंभव है।
इसी अहंकार में वह तीनों लोकों में अत्याचार करने लगा और देवताओं का जीवन संकट में डाल दिया। निराश देवता पहले ब्रह्मा और फिर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने सृष्टि की रक्षा हेतु शिवजी को पुनः गृहस्थ जीवन की ओर लाने का उपाय सुझाया।
कामदेव का प्रयास और शिव का क्रोध
देवताओं ने शिवजी की समाधि भंग करने के लिए कामदेव को भेजा। कामदेव ने पुष्पबाण चलाए, लेकिन शिवजी अत्यंत क्रोधित हुए और तीसरी आंख खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया।
बाद में माता पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे विवाह किया। समय आने पर शिवजी के तेज से छः मुख और बारह भुजाओं वाले तेजस्वी पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ।
कार्तिकेय का जन्म और देवसेना का नेतृत्व
जन्म के बाद कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बनाया गया। उन्हें तारकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का दायित्व सौंपा गया। देवताओं को विश्वास था कि दिव्य शक्तियों से युक्त कार्तिकेय ही इस दैत्य का अंत कर सकेंगे।
छः दिनों का प्रचंड युद्ध
षष्ठी तिथि पर युद्ध आरंभ हुआ। यह संग्राम पूरे छः दिनों तक चला। कार्तिकेय ने अपनी दिव्य शक्ति ‘वलय’ (शक्ति भाला वेल) से सातवें दिन तारकासुर का वध कर दिया।
दैत्य के नाश के बाद देवलोक में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी और सभी देवताओं ने कार्तिकेय जी की आराधना की।
उसी विजय की स्मृति में हर वर्ष स्कंद षष्ठी का पर्व उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है।
