हरियाली अमावस्या: पितरों का आशीर्वाद और भगवान शिव की कृपा

हरियाली अमावस्या का महत्व
नई दिल्ली: हरियाली अमावस्या इस वर्ष गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन गुरु पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है। सूर्य देव कर्क राशि में और चंद्रमा 10:59 बजे तक मिथुन राशि में रहेंगे, इसके बाद चंद्रमा कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।
पंचांग के अनुसार विशेष मुहूर्त
दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त 12 बजे से 12:55 बजे तक रहेगा। वहीं, राहुकाल का समय 02:10 बजे से 03:52 बजे तक निर्धारित है।
हरियाली अमावस्या का सांस्कृतिक महत्व
हरियाली अमावस्या, जिसे सावन अमावस्या भी कहा जाता है, सावन की शिवरात्रि के बाद और हरियाली तीज से पहले आती है। इसका नाम 'हरियाली' इसलिए पड़ा क्योंकि यह सावन के हरे-भरे मौसम में आती है, जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है।
पूजा और दान का महत्व
इस दिन लोग पूजा-पाठ के साथ-साथ पेड़-पौधे भी लगाते हैं। हरियाली अमावस्या पितरों को समर्पित होती है, इसलिए इस दिन पितरों के नाम पर दान और तर्पण का विशेष महत्व है। विवाहित महिलाएं इस दिन अखंड सौभाग्य के लिए झूले की पूजा भी करती हैं। ऐसा करने से जीवन में मधुरता और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
तर्पण और स्नान की विधि
पितरों के तर्पण के लिए सुबह जल्दी उठकर गंगाजल से स्नान करना चाहिए। यदि नदी में स्नान संभव न हो, तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान के बाद ध्यान लगाना और अपने ईष्ट का स्मरण करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव का विशेष पूजन करें। शिवजी को आक और मदार जैसे फूल चढ़ाना लाभकारी माना जाता है।
घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार
घर के मुख्य द्वार पर घी का दिया जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने, दान करने और रुद्राभिषेक करने से कालसर्प दोष और शनि दोष जैसे अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
विशेष धार्मिक आयोजन
उत्तर भारत में हरियाली अमावस्या पर मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में विशेष दर्शन का आयोजन किया जाता है। भक्त भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में जाते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगला विश्व प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसे आषाढ़ अमावस्या के रूप में जाना जाता है।