हिंदू विवाह में दिन का महत्व: शास्त्रों की दृष्टि

हिंदू विवाह का पवित्र अर्थ
हिंदू धर्म में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र संस्कार है जो जीवन के नए अध्याय की शुरुआत करता है। इस संस्कार के लिए सही समय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, और शास्त्रों में इसके लिए कई नियम बताए गए हैं। परंपरागत रूप से, हिंदू धर्म में दिन के समय विवाह को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। दक्षिण भारत में आज भी विवाह दिन के समय ही होते हैं, जबकि उत्तर भारत में रात के समय शादी का चलन बढ़ गया है। हालांकि, शास्त्रों के अनुसार रात के समय फेरे नहीं लेने चाहिए।
शास्त्रों का दृष्टिकोण
हिंदू विवाह का समय निर्धारित करने के लिए ज्योतिषीय गणनाएं और शास्त्रीय नियम महत्वपूर्ण होते हैं। शास्त्रों में कुछ विशेष मुहूर्तों को विवाह के लिए अत्यंत शुभ बताया गया है, क्योंकि ये समय सकारात्मक ऊर्जा और ग्रहों की अनुकूल स्थिति से युक्त होते हैं।
रामदैवज्ञ द्वारा लिखित ग्रंथ मुहूर्त चिंतामणि में विवाह के लिए शुभ समय का उल्लेख है। इस ग्रंथ के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त (लगभग 11:30 बजे से 12:30 बजे तक) सभी संस्कारों के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस समय सूर्य अपनी उच्च स्थिति में होते हैं, जो सकारात्मकता और पवित्रता का प्रतीक है।
विवाह के समय के लिए अन्य ग्रंथों का उल्लेख
नारद मुनि द्वारा रचित नारद संहिता में भी विवाह के लिए कुछ खास मुहूर्त, जैसे सूर्योदय के बाद का प्रभात काल और अभिजीत मुहूर्त, को विशेष रूप से शुभ माना गया है।
आश्वलायन, आपस्तंब, और पारस्कर जैसे गृह्यसूत्र वैदिक ग्रंथ हैं, जो गृहस्थ जीवन के संस्कारों के नियम बताते हैं। इन ग्रंथों में दिन के मुहूर्तों को प्राथमिकता दी गई है।
रात में विवाह की प्रथा का उदय
भारत में मुगल काल (13वीं से 18वीं शताब्दी) के दौरान कई सांस्कृतिक परिवर्तन आए, जिनका प्रभाव विवाह की प्रथाओं पर पड़ा। उत्तर भारत में रात में विवाह की प्रथा का प्रचलन बढ़ा।
इसका मुख्य कारण सुरक्षा था। मुगल काल में आक्रमणों और लूटपाट का खतरा बना रहता था, जिससे रात में विवाह आयोजित करना सुरक्षित हो गया।
अन्य धर्मों में विवाह की परंपरा
मुस्लिम धर्म में विवाह, जिसे निकाह कहा जाता है, एक पवित्र अनुष्ठान है। इस्लाम में निकाह के लिए समय का कोई कठोर नियम नहीं है, लेकिन दिन में निकाह करना अधिक प्रचलित है।
ईसाई धर्म में विवाह एक पवित्र संस्कार है, जो अधिकतर चर्च में आयोजित किया जाता है। ईसाई परंपराओं में विवाह समारोह दिन के समय विशेष रूप से सुबह या दोपहर में करना प्रचलित है।