भगवान के प्रिय बनने के लिए अपनाएं ये 4 गुण और व्यवहार
धार्मिक आस्था और सच्ची भक्ति

धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, भगवान को कर्मकांड से ज्यादा व्यक्ति की भक्ति और सच्ची भावना प्रिय होती है। वे दिखावे से नहीं, बल्कि मन की सच्चाई से प्रसन्न होते हैं। जब श्रद्धा वास्तविक होती है और कर्म निष्कलंक होते हैं, तब भगवान अपने भक्तों के निकट आते हैं। आइए जानते हैं वे गुण और व्यवहार, जिनसे युक्त व्यक्ति भगवान के प्रिय बनते हैं और जिनकी प्रार्थना जल्दी सुन ली जाती है।
1. निस्वार्थ दान-पुण्य करने वाले
शास्त्रों में कहा गया है कि जो लोग बिना किसी दिखावे के जरूरतमंदों की मदद करते हैं, वे भगवान की विशेष कृपा के पात्र होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को न केवल इस जीवन में पुण्य फल मिलता है, बल्कि अगले जन्मों में भी सुख, समृद्धि और सम्मान की प्राप्ति होती है।
2. माता-पिता की सेवा करने वाले
धार्मिक ग्रंथों में माता-पिता को धरती पर भगवान के समान माना गया है। उनकी सेवा और सम्मान करना हर संतान का कर्तव्य है। जो लोग अपने माता-पिता की निष्ठा से सेवा करते हैं, उन पर भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन सुखमय और समर्पित होता है।
3. अहंकार, क्रोध और लालच से दूर रहने वाले
अहंकार, मोह, क्रोध और लालच मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन माने जाते हैं। ये भावनाएं व्यक्ति की सोच को नष्ट कर देती हैं। जो लोग इन विकारों से दूर रहकर सच्चाई और शांति का मार्ग अपनाते हैं, वे समाज में सम्मान प्राप्त करते हैं और भगवान की दृष्टि में विशेष स्थान पाते हैं।
4. सच्चे और निष्काम कर्म करने वाले
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ईश्वर उन कर्मों से प्रसन्न होते हैं जो सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर किए गए हों। ऐसे कर्म, जिनमें कोई स्वार्थ न हो और जो समाज और मानवता की भलाई के लिए हों, वे स्वयं भगवान का आशीर्वाद लेकर आते हैं।