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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: योग की प्राचीनता और आध्यात्मिकता का सफर

हर साल 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, जो योग की प्राचीनता और आध्यात्मिकता को दर्शाता है। यह केवल एक शारीरिक अभ्यास नहीं है, बल्कि मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने का एक माध्यम है। योग का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है, और इसे वैदिक युग की देन माना जाता है। भगवान शिव को योग का जनक माना जाता है, और उनके साथ योग का गहरा संबंध है। इस लेख में योग के महत्व, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और धार्मिक ग्रंथों में इसके उल्लेख के बारे में जानें।
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: योग की प्राचीनता और आध्यात्मिकता का सफर

योग: एक प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा

हर वर्ष 21 जून को विश्वभर में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, लेकिन योग केवल एक आधुनिक प्रवृत्ति नहीं है। यह भारत की हजारों साल पुरानी आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है। योग ने न केवल लोगों को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान किया है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और आत्मज्ञान की दिशा भी दिखाई है। यह कला किसी विशेष धर्म तक सीमित नहीं है, लेकिन इसकी जड़ें हिंदू धर्म में गहराई से जुड़ी हुई हैं।


योग का अर्थ और महत्व

योग का अर्थ केवल शारीरिक स्वास्थ्य नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने का एक माध्यम है। यह एक आध्यात्मिक अनुशासन है जो ध्यान, संयम और आत्मनियंत्रण की शिक्षा देता है। योग तन और मन के बीच एक पुल बनाकर व्यक्ति को आंतरिक रूप से मजबूत बनाता है।


योग का ऐतिहासिक संदर्भ

योग का इतिहास: सिंधु घाटी से पहले की परंपरा

योग का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता से भी पहले के समय से मिलते हैं। यह ज्ञान लगभग 5000 वर्ष पुराना है और इसे वैदिक युग की देन माना जाता है। उस समय के ऋषि-मुनियों ने योग को तपस्या, साधना और आत्म-साक्षात्कार का साधन माना।


धार्मिक ग्रंथों में योग का महत्व

धार्मिक ग्रंथों में योग का उल्लेख

ऋग्वेद, उपनिषद, महाभारत और श्रीमद्भगवद गीता जैसे ग्रंथों में योग का गहन उल्लेख मिलता है। भगवद गीता में कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग और राज योग की व्याख्या की गई है। इन सभी मार्गों का उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से जोड़ना है।


आदि योगी की पहचान

कौन हैं आदि योगी?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को पहला योगी और योग का जनक माना जाता है। कहा जाता है कि हिमालय के कांति सरोवर के किनारे शिव ने सबसे पहले सप्त ऋषियों को योग का ज्ञान दिया। यही सप्त ऋषि आगे चलकर योग के विभिन्न मार्गों के प्रचारक बने।


शिव: योग का प्रतीक

शिव: योग की जीवंत मूर्ति

शिव का नटराज रूप, तपस्वी मुद्रा और जटाओं में बहती गंगा—ये सभी शिव को योग के सर्वोच्च प्रतीक के रूप में दर्शाते हैं। उन्होंने अपने शरीर और मन को इस प्रकार संयमित किया कि वे सृष्टि के रचयिता, संहारक और योग के मार्गदर्शक बन गए।


योग और शिव का संबंध

शिव और योग: दो नहीं, एक ही हैं

योग और शिव एक-दूसरे के पूरक हैं। योग को जानने के लिए शिव को समझना आवश्यक है। और शिव को समझने के लिए योग की साधना करनी होगी। योग केवल आसन नहीं, बल्कि शिवत्व की ओर एक यात्रा है।