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उत्तराखंड का प्राचीन लक्ष्मण सिद्ध मंदिर: एक अद्भुत धार्मिक स्थल

उत्तराखंड के देहरादून में स्थित लक्ष्मण सिद्ध मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जो रामायण काल से जुड़ा हुआ है। यहां भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी। इस मंदिर की पौराणिक कथाएँ और ऋषि दत्तात्रेय के चौरासी सिद्धों से जुड़ी कहानियाँ इसे और भी खास बनाती हैं। जानें इस अद्भुत स्थल के बारे में और इसकी धार्मिक मान्यता के बारे में।
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उत्तराखंड का प्राचीन लक्ष्मण सिद्ध मंदिर: एक अद्भुत धार्मिक स्थल

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर का महत्व


उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, में कई प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण स्थल देहरादून में है, जहां कई प्राचीन मंदिरों की मान्यता है। ये मंदिर दूर-दूर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। देहरादून के मुख्य शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर हरिद्वार रोड पर एक प्राचीन मंदिर है, जो रामायण काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। यहां भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए तपस्या की थी। यह मंदिर ऋषि दत्तात्रेय के चौरासी सिद्धों में से एक है, जहां चना और गुड़ प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।


212 वर्षों की तपस्या

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर के पुजारी अजय देवली के अनुसार, पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में लक्ष्मण ने रावण और मेघनाद का वध किया था, जिसके कारण उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा। रावण एक ब्राह्मण था और शिव का उपासक भी था। लक्ष्मण ने मेघनाथ का वध उस समय किया जब वह अपनी कुल देवी की पूजा में लीन था, और उस समय उनके पास कोई हथियार नहीं था। इस घटना के कारण लक्ष्मण को ब्रह्म हत्या का दोष और राजयक्ष्मा रोग हो गया। इसके उपचार के लिए वे उत्तराखंड आए और ऋषिकेश में 212 वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए। लक्ष्मण ने ऋषिकेश जाने से पहले इसी स्थान पर तप किया था, जहां आज लक्ष्मण सिद्ध मंदिर स्थित है।


84 सिद्धों में से एक

इस मंदिर की एक और महत्वपूर्ण कथा ऋषि दत्तात्रेय से जुड़ी है, जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए 84 शिष्यों को तैयार किया था। उन्होंने अपनी सारी शक्तियां इन शिष्यों को सौंप दी थीं। समय के साथ ये चौरासी शिष्य 84 सिद्धों के रूप में जाने गए और उनके समाधि स्थल को सिद्धपीठ या सिद्ध मंदिर माना गया। इन 84 सिद्धों में देहरादून के चार सिद्ध भी शामिल हैं, जिनमें लक्ष्मण बाबा भी एक हैं। इस मंदिर का नाम लक्ष्मण सिद्धपीठ इसलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने यहीं समाधि ली थी।