ऋषि पंचमी व्रत: पापों से मुक्ति का अवसर

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व
ऋषि पंचमी व्रत से दूर होते हैं अनजाने में किए गए पापों के दोष
ऋषि पंचमी व्रत, नई दिल्ली: यह व्रत सप्तऋषियों की पूजा के लिए समर्पित है, जिसे मुख्यतः महिलाएं करती हैं। इस दिन व्रत करने से अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। ऋषि पंचमी का त्यौहार हिन्दू पंचांग के भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है।
यह त्यौहार गणेश चतुर्थी के बाद आता है। आज 28 अगस्त को भाद्रपद शुक्ल पंचमी है, जिस दिन ऋषि पंचमी व्रत का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के माध्यम से पूजा-पाठ के दौरान की गई गलतियों के दोष समाप्त हो जाते हैं।
पूजन से जुड़े दोषों से मुक्ति
पूजन से जुड़े सभी दोषों से मिलती है मुक्ति
यह व्रत केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि पुरुषों के लिए भी किया जा सकता है। पूजा-पाठ करते समय कई बार अनजाने में कुछ गलतियां हो जाती हैं, जिससे दोष लगता है। इन दोषों को दूर करने के लिए साल में एक बार ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषियों की पूजा और व्रत करने की परंपरा है। भाद्रपद शुक्ल पंचमी पर सप्त ऋषियों की पूजा करने से पूजन से जुड़े दोषों से मुक्ति मिलती है।
मत्स्य अवतार की कथाएं
मत्स्य अवतार से जुड़ी कथाओं में है सप्तऋषियों का जिक्र
भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य था। इस अवतार के दौरान जलप्रलय आया था और भगवान ने राजा मनु, सप्तऋषियों और अन्य जीवों की रक्षा की थी। सप्तऋषियों में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ शामिल हैं। इनके नामों का जप करने से अनजाने में की गई गलतियों का दोष दूर होता है।
ऋषि पंचमी व्रत की विशेषताएँ
ऋषि पंचमी व्रत से जुड़ी खास बातें
सप्त ऋषियों की पूजा में हल्दी, चंदन, रोली, अबीर, गुलाल, मेहंदी, चावल, वस्त्र और फूल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनने की परंपरा है। इस दिन मोरधन (भगर) और दही का सेवन किया जाता है। हल की जुताई से पैदा हुए अन्न और सादे नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। पूजा के बाद दान-पुण्य का महत्व है।
ऋषि पंचमी के नियम
इन नियमों का करें पालन
ऋषि पंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान के सामने ऋषि पंचमी व्रत के साथ सप्तऋषियों की पूजा का संकल्प लेना चाहिए। पूजा में मिट्टी या तांबे के कलश में जौ भरकर पूजा स्थल पर रखा जाता है।
कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर, उसके दलों में सप्तऋषियों और उनकी पत्नियों का ध्यान किया जाता है। इसके बाद सभी सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। यदि घर में पूजा नहीं कर पा रहे हैं, तो किसी अन्य मंदिर में जाकर पूजा की जा सकती है, जहां सप्तऋषियों की प्रतिमाएं हों।
सप्तऋषियों की जानकारी
यह हैं सप्तऋषि
- कश्यप ऋषि: इनकी 17 पत्नियां थीं, जिनमें से अदिति से देवताओं और दिति से दैत्यों का जन्म हुआ।
- अत्रि ऋषि: रामायण में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अत्रि ऋषि के आश्रम गए थे।
- भारद्वाज ऋषि: आयुर्वेद ग्रंथ की रचना भारद्वाज ऋषि ने की थी।
- विश्वामित्र ऋषि: गायत्री मंत्र की रचना विश्वामित्र मुनि ने की थी।
- गौतम ऋषि: गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थीं, जिन्हें श्रीराम ने पुनर्जीवित किया।
- जमदग्नि ऋषि: इनके पुत्र भगवान परशुराम हैं।
- वशिष्ठ ऋषि: रामायण में श्रीराम और लक्ष्मण को प्रारंभिक शिक्षा वशिष्ठ मुनि ने दी थी।