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ओशो की दृष्टि में अहंकार का त्याग: क्या यह संभव है?

क्या अहंकार का त्याग संभव है? ओशो की आध्यात्मिक दृष्टि में इस प्रश्न का उत्तर खोजें। जानें अहंकार की वास्तविकता और इसे नियंत्रित करने के उपाय, जैसे ध्यान, स्वीकार्यता, और प्रेम। यह लेख आपको अहंकार से मुक्ति के नए दृष्टिकोण प्रदान करेगा।
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ओशो की दृष्टि में अहंकार का त्याग: क्या यह संभव है?

अहंकार और उसकी वास्तविकता


आज के युग में हर व्यक्ति कहीं न कहीं अपने 'मैं' के अहसास में उलझा हुआ है। चाहे वह सामाजिक स्थिति हो, धन, या ज्ञान—हर कोई अपने भीतर एक सूक्ष्म लेकिन शक्तिशाली अहंकार को लेकर चलता है। लेकिन क्या हम इस अहंकार को पूरी तरह से छोड़ सकते हैं? या क्या इसे नियंत्रित करना ही असली मुक्ति का मार्ग है? ओशो की आध्यात्मिक दृष्टि हमें इस प्रश्न का एक नया और गहरा उत्तर देती है।


अहंकार की परिभाषा

ओशो के अनुसार, अहंकार वह नहीं है जो हम समझते हैं। यह एक 'छवि' है, जिसे हमने समाज, परिवार और अनुभवों के आधार पर बनाया है। हम अपने नाम, काम और उपलब्धियों को ही 'मैं' मान लेते हैं। यही झूठा 'मैं'—जिसे ओशो 'ईगो' कहते हैं—हमें हमारे असली स्वरूप से दूर कर देता है।


ओशो का कहना है, “अहंकार एक परछाई की तरह है। जैसे ही आप किसी उपलब्धि के कारण खुद को बड़ा मानने लगते हैं, अहंकार प्रवेश कर जाता है। लेकिन यह आप नहीं हैं। यह केवल एक मनोवैज्ञानिक भ्रम है।”


क्या अहंकार का त्याग संभव है?

अहंकार को त्यागने का अर्थ अक्सर 'छोड़ देना' समझा जाता है, लेकिन ओशो इस धारणा को चुनौती देते हैं। उनके अनुसार, अहंकार को त्यागना संभव नहीं है, क्योंकि त्यागने का प्रयास एक नए अहंकार को जन्म देता है—"मैं बड़ा त्यागी हूँ"। इसलिए, ओशो का कहना है कि अहंकार से मुक्ति 'त्याग' द्वारा नहीं, बल्कि जागरूकता के माध्यम से संभव है। जब आप अपने विचारों और भावनाओं को सजगता से देखते हैं, तो आप जान पाएंगे कि अहंकार कब और कैसे कार्य करता है।


अहंकार पर नियंत्रण के उपाय

1. ध्यान (Meditation):


ओशो के अनुसार, ध्यान हमें अपने असली 'स्व' से जोड़ता है। ध्यान के क्षणों में जब विचार रुकते हैं, तब 'मैं' की भावना भी खो जाती है और व्यक्ति अपने वास्तविक अस्तित्व को महसूस करता है।


2. स्वीकार करना (Acceptance):


अहंकार तब उभरता है जब हम खुद को दूसरों से बेहतर मानते हैं। ओशो का कहना है कि खुद को जैसे हैं, वैसे स्वीकार करना पहला कदम है। जब आप अपने दोष और सीमाओं को स्वीकार करते हैं, तो अहंकार की पकड़ ढीली हो जाती है।


3. हास्य और विनम्रता:


ओशो मानते थे कि जो व्यक्ति खुद पर हंस सकता है, वह कभी अहंकारी नहीं हो सकता। विनम्रता एक समझ है कि हम कुछ भी नहीं जानते।


4. प्रकृति के साथ एकात्मता:


अहंकार हमें अलग महसूस कराता है। ओशो का कहना है कि जब व्यक्ति प्रकृति के साथ अपने संबंध को महसूस करता है, तब वह देखता है कि वह भी उसी समष्टि का हिस्सा है।


5. प्रेम:


ओशो के अनुसार, प्रेम और अहंकार एक साथ नहीं रह सकते। जब व्यक्ति सच्चे प्रेम में होता है, तो वह खुद को मिटा देता है। प्रेम में 'मैं' का स्थान 'तू' ले लेता है, और यही अहंकार के खिलाफ सबसे प्रभावशाली औषधि है।