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कामदेव और नारद मुनि की अद्भुत कथा

इस लेख में कामदेव और नारद मुनि की अद्भुत कथा का वर्णन किया गया है, जहाँ कामदेव ने नारद मुनि की समाधि को भंग करने का प्रयास किया। क्या वह सफल हो पाए? नारद मुनि की दया और कामदेव के भय के बीच एक गहरी कहानी छिपी है। जानिए कैसे नारद मुनि ने कामदेव को क्षमा किया और इस घटना ने उनके जीवन में एक नया अध्याय कैसे खोला।
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कामदेव और नारद मुनि की अद्भुत कथा

कामदेव का प्रयास

नारद मुनि की समाधि अब पर्वतराज हिमालय की तरह स्थिर हो गई थी। न तो पवन का हलचल था और न ही चित्त का कोई विचलन — सब कुछ एकाग्र और ब्रह्ममय था। कामदेव का उद्देश्य अब इस दिव्य समाधि को भंग करना था। उसने अपने सभी पुष्प बाणों को छोड़ दिया। मल्लिका, मधु, चम्पा, और शतदल जैसे बाणों के रूप में निकले, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, वे सभी बाण उस ब्रह्मशांत वायु में विलीन हो गए।


कामदेव का भय

कामदेव का हृदय भय से कांप उठा। उसे याद आया कि जब उसने महादेव की समाधि भंग करने का प्रयास किया था, तो वह भस्म हो गया था। वही भय अब उसके रोम-रोम में व्याप्त हो गया। उसने सोचा, "क्या यह मुनि भी वही न करें? उनकी समाधि में भी वही अग्नि छिपी है, जो भस्म कर सकती है।"


कामदेव की हार

कामदेव ने महसूस किया कि जहाँ लक्ष्मीपति श्रीहरि रक्षक हैं, वहाँ उसकी कला का कोई प्रभाव नहीं। जैसे गज की पीठ पर बैठी मक्खी यह सोचती है कि वह उसे दबा देगी, वैसा ही कुछ हुआ। नारद मुनि की समाधि पर कामदेव का प्रभाव महासागर पर तरु-पत्र की छाया के समान था।


नारद मुनि की दया

कामदेव को अपने विनाश का भय सताने लगा। उसने सोचा, "जब यह मुनि समाधि से उठेंगे, तो मुझे भस्म कर देंगे।" इस विचार से वह नारद मुनि के चरणों में गिर पड़ा और कहा, "हे मुनिवर! मैं अपराधी हूँ, कृपया मुझे क्षमा करें।" नारद मुनि ने जब अपनी आँखें खोलीं, तो देखा कि कामदेव और उसके गण उनके चरणों में पड़े हैं। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हें भय करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे तुमसे कोई क्रोध नहीं।"


कामदेव की प्रशंसा

कामदेव ने नारद मुनि की इस असीम क्षमा को सुनकर कहा, "आप तो स्वयं महायोगी हैं। जब मैंने शिव की समाधि भंग की थी, तो उन्होंने मुझे भस्म कर दिया था। लेकिन आपने मुझे तिरस्कार तक नहीं किया। इससे स्पष्ट है कि आपने क्रोध को जीत लिया है।" कामदेव की वाणी नारद मुनि के श्रवणों में मधुरता से बसी रही।


नारद मुनि का गर्व

कामदेव की प्रशंसा सुनकर नारद मुनि के भीतर एक तरंग उठी। उन्होंने सोचा, "क्या मैं वास्तव में इतना महान योगी हूँ?" धीरे-धीरे वह गर्व की लहर में बदल गई। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने कामदेव को क्षमा किया, जबकि महादेव ने उसे भस्म कर दिया। यह गर्व उनके अंतर्मन में गहराई से उतरने लगा।


नए अध्याय की शुरुआत

इस गर्व ने उनके जीवन में एक नए अध्याय का द्वार खोल दिया, जिसका परिणाम समस्त लोकों को चकित करने वाला था।


क्रमशः

— सुखी भारती