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गया में पिंडदान का महत्व और पौराणिक कथा

गया, बिहार का एक प्राचीन नगर, पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। इसे 'मोक्ष की नगरी' कहा जाता है, जहां पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस लेख में हम गया के धार्मिक महत्व, पौराणिक कथा और यहां पिंडदान की प्रक्रिया के बारे में जानेंगे। क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु का यहां विशेष स्थान है? जानें गया की महिमा और इसके पीछे की कहानियां।
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गया में पिंडदान का महत्व और पौराणिक कथा

गया का धार्मिक महत्व

Pitru Paksha 2025: गया, बिहार का एक प्राचीन और पवित्र नगर है, जिसे 'मोक्ष की नगरी' के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान यहां पिंडदान और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है और परिवार की सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। लेकिन गया में पिंडदान का महत्व क्या है? आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा और महत्व।


गया का धार्मिक महत्व

गया को हिंदू धर्म में पितृ तीर्थ के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। विष्णु पुराण और वायु पुराण जैसे ग्रंथों में इसे 'मुक्ति की भूमि' कहा गया है। मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं। फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करने से न केवल पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, बल्कि वंशजों को भी सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहां किया था, जिससे इस स्थान का महत्व और बढ़ गया है।


पौराणिक कथा

गया में पिंडदान के महत्व को समझने के लिए गयासुर की कथा जानना आवश्यक है। पुराणों के अनुसार, गयासुर एक शक्तिशाली असुर था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और वरदान मांगा कि जो कोई भी उसके शरीर को छूएगा, उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस वरदान के कारण यमलोक में भीड़ बढ़ने लगी, जिससे देवता चिंतित हो गए। ब्रह्मा जी ने गयासुर से यज्ञ के लिए अपनी देह दान करने का आग्रह किया, जिसे उसने खुशी-खुशी स्वीकार किया।


यज्ञ और मोक्ष का वरदान

गयासुर ने अपने शरीर को यज्ञ के लिए भूमि पर लिटा दिया। देवताओं ने यज्ञ संपन्न किया और भगवान विष्णु ने उनके शरीर पर विराजमान होकर उन्हें वरदान दिया कि उनका शरीर पवित्र तीर्थ के रूप में अमर रहेगा। जो भी यहां सच्चे मन से पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसके बाद गयासुर का शरीर पत्थर में बदल गया और यह स्थान गया तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।


गया में पिंडदान का महत्व

गया में पिंडदान की परंपरा को इसलिए सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि यहां भगवान विष्णु की विशेष कृपा है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया पृथ्वी के सभी तीर्थों में सर्वोत्तम है। यहां पिंडदान करने से न केवल पितरों को बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार में पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। गया में कई महत्वपूर्ण स्थान जैसे विष्णुपद मंदिर और फल्गु नदी का तट पिंडदान के लिए विशेष रूप से पवित्र माने जाते हैं।


भगवान विष्णु के चरण चिह्न

गया की महिमा को रामायण से भी जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने अपनी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ गया में फल्गु नदी के तट पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इस घटना ने गया की पवित्रता को और बढ़ा दिया। यहां के विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न आज भी मौजूद हैं।