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तिरुपति बालाजी में बाल दान की परंपरा का रहस्य

तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल दान की परंपरा का एक गहरा धार्मिक महत्व है। यह परंपरा भगवान विष्णु के प्रति भक्तों की श्रद्धा को दर्शाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ऋषि भृगु ने यज्ञ का फल भगवान विष्णु को अर्पित किया और मां लक्ष्मी के बैकुंठ धाम छोड़ने के पीछे की कहानी। साथ ही, जानेंगे कि बाल दान का क्या महत्व है और भक्त इसे क्यों करते हैं।
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तिरुपति बालाजी में बाल दान की परंपरा का रहस्य

भगवान विष्णु की पूजा श्रीवेंकटेश्वर के रूप में


Tirupati Balaji, नई दिल्ली: भारत में कई प्रसिद्ध और दिव्य मंदिर हैं, जिनमें भक्तों का अटूट विश्वास है। तिरुपति बालाजी मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है, उनमें से एक है। यहां भक्त दूर-दूर से भगवान श्रीवेंकटेश्वर के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों द्वारा अपने बाल अर्पित करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आइए जानते हैं कि लोग बाल दान क्यों करते हैं।


ऋषि भृगु ने यज्ञ का फल किसे दिया

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विश्व कल्याण के लिए एक यज्ञ का आयोजन हुआ। इस यज्ञ का फल किसे अर्पित किया जाए, यह तय करने का कार्य ऋषि भृगु को सौंपा गया। पहले वे ब्रह्मा जी के पास गए, फिर भगवान शिव के पास, लेकिन उन्हें दोनों अनुपयुक्त लगे। अंत में, वे भगवान विष्णु से मिलने बैकुंड धाम पहुंचे, जहां विष्णु जी विश्राम कर रहे थे।


जब ऋषि भृगु ने देखा कि विष्णु जी को उनकी उपस्थिति का पता नहीं है, तो उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु के वक्ष पर ठोकर मारी। इस पर विष्णु जी ने विनम्रता से ऋषि का पांव पकड़ा और पूछा कि क्या उन्हें चोट लगी है। इस घटना ने ऋषि भृगु को अपनी गलती का एहसास कराया और उन्होंने यज्ञ का फल भगवान विष्णु को अर्पित करने का निर्णय लिया।


लक्ष्मी जी ने बैकुंठ धाम क्यों छोड़ा

मां लक्ष्मी ने ऋषि भृगु द्वारा भगवान विष्णु के अपमान को देखकर दुखी होकर बैकुंठ धाम छोड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने पृथ्वी पर रहने का फैसला किया, जिसे खोजने के लिए भगवान विष्णु ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। अंततः भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्रीनिवास के रूप में जन्म लिया। भगवान शिव और ब्रह्मा जी ने भी उनकी मदद के लिए गाय और बछड़े का रूप धारण किया। मां लक्ष्मी का जन्म पृथ्वी पर पद्मावती के रूप में हुआ और कुछ समय बाद श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह हो गया।


बाल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत

विवाह की कुछ रीतियों को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने कुबेर देव से धन उधार लिया था और कहा था कि कलियुग के अंत तक वह ब्याज समेत यह कर्ज चुका देंगे। तभी से भक्त भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के ऋण को चुकाने के लिए दान करते हैं। इसी क्रम में बालों का दान भी किया जाता है। माना जाता है कि जो भी भक्त मंदिर में बाल दान करता है, उसे भगवान 10 गुना धन लौटाते हैं और उस पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।


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