देव आनंद की जयंती: संघर्ष से सफलता तक का सफर

देव आनंद का संघर्षपूर्ण सफर
देव आनंद की जयंती: हिंदी सिनेमा के अमर अभिनेता देव आनंद का फिल्मी करियर आसान नहीं था। जब वे मुंबई पहुंचे, तो उनके पास न तो रहने की उचित जगह थी और न ही खाने के लिए पैसे। कई बार उन्हें भूखे रहकर रात बितानी पड़ी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मेहनत करते रहे। उनके अभिनय के प्रति जुनून और समर्पण ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
देव साहब ने अपने करियर की शुरुआत 1946 में फिल्म 'हम एक हैं' से की थी, जिसमें उन्हें 400 रुपये की फीस मिली थी। उस समय यह राशि काफी बड़ी मानी जाती थी और उनके लिए यह पहली कमाई उनके संघर्ष का प्रतीक थी।
भिखारी के प्रति दया
भिखारी को देखकर पसीज गया दिल
हालांकि, यह खुशी ज्यादा समय तक नहीं रही। शूटिंग के बाद जब वे घर लौट रहे थे, तो उन्होंने एक बूढ़े भिखारी को देखा, जो भूख से तड़प रहा था। यह देखकर देव साहब का दिल भर आया और उन्होंने अपनी पहली कमाई उस भिखारी को दे दी।
जब उनके करीबी दोस्तों ने इस घटना के बारे में पूछा, तो देव साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, 'पैसा तो मैं फिर से कमा लूंगा, लेकिन किसी को भूख से तड़पते नहीं देख सकता था।'
देव आनंद की उदारता
देव आनंद की दरियादिली
देव साहब अपनी उदारता और मानवता के लिए जाने जाते थे। वे केवल पर्दे पर ही नहीं, बल्कि असल जिंदगी में भी एक नेकदिल इंसान थे। उनकी यह सोच और उदारता उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। यही कारण है कि आज भी उनके प्रशंसक उन्हें केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि मानवता का प्रतीक मानते हैं।
इस घटना के बाद, देव साहब ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनाई और 'सीआईडी', 'पेइंग गेस्ट', 'ज्वेल थीफ', 'गाइड' और 'हरे राम हरे कृष्ण' जैसी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में राज किया। उनकी मुस्कान, स्टाइल और रोमांटिक छवि ने उन्हें हिंदी सिनेमा का 'एवरग्रीन स्टार' बना दिया। देव साहब का मानना था कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उन्होंने कई बार कहा कि कलाकार केवल पर्दे पर नहीं, बल्कि अपनी असल जिंदगी में भी लोगों के लिए मिसाल बनते हैं। उनकी यह सोच और जीवनशैली आज भी नए कलाकारों और उनके प्रशंसकों को प्रेरित करती है।