नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा का महत्व

नवरात्रि का पांचवां दिन और मां स्कंदमाता की आराधना
नई दिल्ली: आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर शुक्रवार को नवरात्रि का पांचवां दिन मनाया जा रहा है। इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो माता पार्वती का मातृत्वपूर्ण रूप मानी जाती हैं। उनकी आराधना से संतान सुख, ज्ञान, शक्ति और आध्यात्मिक विकास की प्राप्ति होती है, साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि भी आती है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा दोपहर 3:23 बजे तक तुला राशि में रहेंगे। इसके बाद चंद्रमा वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:48 बजे से 12:36 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय सुबह 10:42 बजे से 12:12 बजे तक रहेगा।
पुराणों के अनुसार, मां स्कंदमाता भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है, क्योंकि वे कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। चार भुजाओं वाली मां स्कंदमाता अपने भक्तों को अभय मुद्रा में आशीर्वाद देती हैं और गोद में छह मुख वाले बाल स्कंद को धारण करती हैं। कमल पुष्प लिए यह देवी शांति, पवित्रता और सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती हैं।
मां स्कंदमाता की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण उनकी उपासना करने वाला भक्त तेजस्वी और कांतिमय बनता है। शास्त्रों में उनकी महिमा का वर्णन है कि उनकी भक्ति से भवसागर पार करना सरल हो जाता है और भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
मां की विधि-विधान से पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, साफ वस्त्र पहनें और संभव हो तो पीले वस्त्र धारण करें, जो शांति और सकारात्मकता का प्रतीक है। माता की चौकी को साफ करें और गंगाजल का छिड़काव करें। उन्हें पान, सुपारी, फूल, फल, अक्षत आदि अर्पित करें। इसके साथ ही श्रृंगार का सामान भी चढ़ाएं, जिसमें लाल चुनरी, सिंदूर, अक्षत, लाल पुष्प (विशेषकर गुड़हल), चंदन, रोली आदि शामिल हों। फिर, मिठाई का भोग लगाएं।
स्कंदमाता की कथा का पाठ करें और उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद मां दुर्गा की आरती करें और आचमन कर पूरे घर में आरती दिखाना न भूलें। अंत में प्रसाद ग्रहण करें, जिससे संतान और स्वास्थ्य संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। मां स्कंदमाता की आराधना मन को एकाग्र और पवित्र बनाती है। यह पावन दिन भक्तों के लिए आध्यात्मिक उन्नति और सुख-समृद्धि का अवसर लेकर आता है।