निर्जला एकादशी: धार्मिक महत्व और पूजन विधि

निर्जला एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष स्थान है, और निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सर्वोच्च माना जाता है। यह व्रत अत्यंत कठिन है, क्योंकि इसमें पानी का भी सेवन नहीं किया जाता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन का व्रत करने से साल भर की 24 एकादशियों के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष, 07 जून को वैष्णव एकादशी का व्रत मनाया जा रहा है, जो जीवन में शुभता लाने का कार्य करता है।
धार्मिक महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य, लंबी उम्र, मोक्ष और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसे भीमसेन एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि महाभारत काल में भीम ने इस व्रत को किया था, जिससे उन्हें अक्षय पुण्यफल प्राप्त हुआ। इस व्रत को निर्जला रखने का विधान है।
पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को साफ करें और लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पूजा में पीले वस्त्र, पीली मिठाई, पीले फूल, चंदन, तुलसी दल, धूप, दीप आदि का समावेश करें। भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं। फिर चंदन का तिलक करके धूप-दीप जलाएं। अंत में, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। पूजा के समापन पर आरती करें और भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें।
भोग
भगवान श्रीहरि विष्णु को एकादशी के दिन तुलसी दल, पीली मिठाई जैसे बूंदी के लड्डू, आम, केला, खरबूजा, तरबूज और केसर की खीर का भोग अर्पित किया जा सकता है। इससे व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।