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पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान का महत्व

पितृपक्ष का समय आ रहा है, जब श्राद्ध और पिंडदान का महत्व हर हिंदू परिवार में चर्चा का विषय बनता है। प्रेमानंद जी महाराज ने इस पर प्रकाश डाला है कि कैसे ये क्रियाएँ न केवल हमारी भावनाओं को शुद्ध करती हैं, बल्कि हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति और उन्नति भी प्रदान करती हैं। जानें कि कैसे आप अपने माता-पिता और पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं और उनके कल्याण के लिए क्या कर सकते हैं।
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पितृपक्ष का महत्व

Pind Daan Importance, सिटी रिपोर्टर | नई दिल्ली : पितृपक्ष का समय नजदीक आ रहा है, और इस दौरान पिंडदान और श्राद्ध का महत्व हर हिंदू परिवार में चर्चा का विषय बन जाता है। प्रेमानंद जी महाराज ने श्राद्ध और पिंडदान के महत्व को सरल शब्दों में समझाया है। उनके अनुसार, यह न केवल हमारी भावनाओं को शुद्ध करता है, बल्कि हमारे पूर्वजों की आत्मा को शांति और उन्नति भी प्रदान करता है। आइए, जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज ने पिंडदान और श्राद्ध के बारे में क्या बताया और यह हमारे लिए क्यों जरूरी है।


श्राद्ध और पिंडदान का महत्व

प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि श्राद्ध और पिंडदान हमारी भावनाओं को शुद्ध करने का एक साधन है। यदि आपके पिता का निधन हो चुका है और आप उनकी संपत्ति का उपयोग कर रहे हैं, तो उनका आभार व्यक्त करना आपका कर्तव्य है। हमारे माता-पिता ने हमें पाला-पोसा, और जब वे इस दुनिया में नहीं हैं, तब भी हमारा उनके प्रति कर्तव्य बना रहता है।


भजन, कीर्तन, दान, पुण्य और पिंडदान के माध्यम से हम उनकी आत्मा को शांति और उन्नति प्रदान कर सकते हैं। यदि वे किसी कर्म के दंड में हैं, तो आपके भजन और पिंडदान से उनका कल्याण होगा। यह आपके और आपके माता-पिता के बीच के रिश्ते को और मजबूत करता है।


कर्तव्य निभाना है जरूरी

महाराज जी के अनुसार, यदि आप अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य नहीं निभाते, तो यह कर्तव्यहीनता होगी। भले ही वे अब इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके लिए आपका कर्तव्य समाप्त नहीं होता। उन्होंने आपके लिए जीवन में बहुत कुछ किया, और अब उनकी आत्मा के कल्याण की जिम्मेदारी आपकी है।



पितरों के लिए श्राद्ध का महत्व

यदि आप उनकी संपत्ति में नहीं रहते, तो भी अपनी कमाई से दान करें, तीर्थ यात्रा करें या पिंडदान करें। इससे उनकी आत्मा को जहां भी हो, उन्नति मिलेगी और उनका कल्याण होगा। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि यह प्रथा इसलिए बनाई गई है ताकि आप अपने पितरों को भगवत प्राप्ति करा सकें। एक संकल्प से 21 पीढ़ियों तक का कल्याण हो सकता है, और आपके पिता को परम पद की प्राप्ति हो सकती है।


पुत्र क्यों करता है श्राद्ध?

प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि जैसे स्वप्न में आपको जाग्रत शरीर की स्मृति नहीं रहती, वैसे ही हमारे पितृ जिस लोक में हैं, उन्हें हमारी स्मृति नहीं रहती। लेकिन पुत्र का अपने पिता और पूर्वजों के प्रति कर्तव्य बना रहता है। पुत्र न केवल अपने पिता, बल्कि पितामह और उनकी पीढ़ियों को भी श्राद्ध के जरिए स्वर्ग की प्राप्ति करा सकता है। खासकर गया में श्राद्ध करने से पितरों को गति और शांति मिलती है। यह कर्तव्य का निर्वाह है, जो हमें अपने पूर्वजों से जोड़े रखता है।