पौष पुत्रदा एकादशी: संतान सुख की प्राप्ति का पवित्र व्रत
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को अत्यधिक पवित्र और फलदायी माना जाता है। हर महीने आने वाली दोनों एकादशियां भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होती हैं, लेकिन कुछ एकादशियां विशेष फल के कारण अधिक महत्वपूर्ण होती हैं। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, इनमें से एक है।
इस वर्ष 2025 में यह व्रत 30 दिसंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह एकादशी संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें इस दिन पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ व्रत करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से न केवल संतान की प्राप्ति होती है, बल्कि वंश वृद्धि और पारिवारिक सुख का मार्ग भी प्रशस्त होता है।
पुत्रदा एकादशी का शास्त्रीय वर्णन
पद्म पुराण और भविष्य पुराण में पुत्रदा एकादशी का विशेष उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी का नाम ही इसके फल को दर्शाता है। 'पुत्रदा' का अर्थ है- पुत्र प्रदान करने वाली। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से संतानहीन दंपत्तियों को भी संतान सुख प्राप्त हो सकता है।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भद्रावती नगरी के राजा सुकुमार और रानी शैव्या लंबे समय तक संतान न होने के कारण दुखी रहते थे। उन्होंने श्रद्धा भाव से पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें योग्य पुत्र की प्राप्ति हुई। इसी कथा के कारण यह एकादशी संतान प्राप्ति का प्रमुख व्रत मानी जाती है।
आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, पुत्रदा एकादशी केवल संतान प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह व्रत व्यक्ति को आत्मसंयम, पवित्रता और भक्ति की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। शास्त्रों में बताया गया है कि संतान की प्राप्ति केवल भौतिक प्रयासों से नहीं, बल्कि पुण्य कर्म और ईश्वर कृपा से भी जुड़ी होती है। एकादशी व्रत इसी पुण्य संचय का माध्यम माना गया है।
व्रत का फल
मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत नियमपूर्वक करने से संतान संबंधी बाधाएं दूर होती हैं। इस दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन, व्रत कथा का पाठ और विष्णु मंत्रों का जाप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसके साथ ही यह व्रत मानसिक शांति, पारिवारिक सौहार्द और जीवन में स्थिरता प्रदान करता है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत पापों के प्रभाव को कम कर पूर्व जन्मों के दोषों के शमन में भी सहायक माना गया है।
