प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, रायपुर में चल रहा था इलाज
रायपुर: प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया। 88 वर्षीय शुक्ल पिछले कुछ महीनों से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। सांस लेने में कठिनाई के कारण उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, और बाद में रायपुर एम्स में उनका इलाज चल रहा था। मंगलवार शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें हाल ही में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार
ज्ञानपीठ के महाप्रबंधक आरएन तिवारी ने उन्हें वाग्देवी की प्रतिमा और पुरस्कार का चेक सौंपकर सम्मानित किया। विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला। इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि जब हिंदी और अन्य भाषाओं पर संकट की बात की जा रही है, मुझे विश्वास है कि नई पीढ़ी हर भाषा और विचारधारा का सम्मान करेगी।
पीएम नरेंद्र मोदी ने भी जाना था हाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ के 25वें स्थापना दिवस पर विनोद कुमार शुक्ल से मुलाकात की थी। इस दौरान शुक्ल ने प्रधानमंत्री से कहा था कि, 'लिखना मेरे लिए सांस लेने जैसा है। मैं जल्द से जल्द घर लौटना चाहता हूं और लिखना जारी रखना चाहता हूं।'
1937 में हुआ था जन्म
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने पिछले 50 वर्षों से लेखन किया है। उनकी पहली कविता संग्रह 'लगभग जय हिंद' 1971 में प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानी संग्रह 'पेड़ पर कमरा' और 'महाविद्यालय' भी बहुत चर्चित हैं। उनके उपन्यास 'नौकर की कमीज', 'खिलेगा तो देखेंगे', और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट उपन्यासों में माने जाते हैं।
इन पुरस्कारों से हो चुके सम्मानित
विनोद कुमार शुक्ल को कविता और उपन्यास लेखन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रजा पुरस्कार, वीरसिंह देव पुरस्कार, और साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं।
नाबोकॉव अवॉर्ड पाने वाले पहले एशियाई
हाल के वर्षों में उन्हें मातृभूमि बुक ऑफ द ईयर अवॉर्ड भी मिला। पिछले साल उन्हें पेन अमेरिका द्वारा नाबोकॉव अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, और वे इस सम्मान को पाने वाले पहले एशियाई साहित्यकार हैं।
