बाघों और तेंदुओं के हमलों में बढ़ती चिंता: वन्यजीवों के साथ संघर्ष
वन्यजीवों और इंसानों के बीच संघर्ष
वन्यजीवों और मानवों के बीच संघर्ष एक पुरानी समस्या है, लेकिन इस वर्ष की घटनाओं ने इसे एक नया मोड़ दिया है। पहले जहां तेंदुओं के हमलों की घटनाएं अधिक थीं, वहीं अब बाघों के हमले भी गंभीर खतरे का कारण बन गए हैं। इस साल के पहले छह महीनों में, बाघों ने तेंदुओं की तुलना में अधिक मानव जीवन का दावा किया है, जो इस बदलाव को स्पष्ट करता है।2014 से 2024 के बीच बाघों और तेंदुओं के हमलों के कई गंभीर मामले सामने आए। इस अवधि में बाघों के हमलों में 68 मौतें और 83 लोग घायल हुए, जबकि तेंदुओं के हमलों में 214 लोगों की जान गई और 1006 लोग घायल हुए।
इस साल के पहले छह महीनों में, वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कुल 25 लोग वन्यजीवों के हमलों में मारे गए और 136 घायल हुए। इनमें बाघों के हमलों में 10 मौतें और 3 लोग घायल हुए, जबकि तेंदुओं के हमलों में 6 लोगों की जान गई और 25 लोग घायल हुए। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि बाघों के हमले अब तेंदुओं की तुलना में अधिक हो रहे हैं, जो चिंता का विषय है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग ने सक्रिय कदम उठाए हैं। जनवरी से जून के बीच बाघों के खिलाफ चलाए गए रेस्क्यू अभियानों में 8 बाघों को पकड़ा गया, जिनमें से 7 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया और 1 को उसके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ा गया। इसके अलावा, बाघों को पकड़ने और इलाज के लिए 25 अनुमतियां भी जारी की गईं।
तेंदुओं के मामले में भी विभाग ने रेस्क्यू अभियान तेज किया है। इस अवधि में तेंदुओं के लिए 124 अनुमतियां जारी की गईं, जिनमें पिंजरा लगाने, ट्रैंक्यूलाइज करने और आवश्यक परिस्थितियों में मारने की अनुमति शामिल है। इस दौरान 44 तेंदुए पकड़े गए, जिनमें से 19 को रेस्क्यू सेंटर भेजा गया।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग ने क्यूआरटी (क्विक रिस्पांस टीम) का गठन किया है, जो संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी रखती है। इसके अलावा, लोगों को इस संघर्ष के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं, ताकि वे सुरक्षित रह सकें और वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व बना सकें।
इन प्रयासों से उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में वन्यजीवों और इंसानों के बीच संघर्ष को कम किया जा सकेगा, जिससे दोनों का जीवन सुरक्षित रह सकेगा।