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भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप हर का महत्व और कथा

भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप हर का महत्व और उनकी कथा को जानें। यह लेख बताता है कि कैसे भगवान हर अपने भक्तों को संकटों से मुक्त करते हैं और तारकासुर के वध में उनकी भूमिका क्या थी। जानिए इस अद्भुत कथा के माध्यम से भगवान हर की महिमा और उनके प्रति भक्ति का महत्व।
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भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप हर का महत्व और कथा

भगवान हर का स्वरूप और उनके कार्य

शैवगाम के अनुसार, भगवान रुद्र का आठवां स्वरूप हर कहलाता है। हर को सर्पभूषण के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि सभी मंगल और अमंगल तत्व ईश्वर के शरीर में समाहित हैं। सृष्टि का निर्माण और उसका संहार, दोनों ही भगवान रुद्र के कार्य हैं। जो भक्त भगवान हर की शरण में आते हैं, वे आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तपों से मुक्त हो जाते हैं। इस प्रकार, भगवान रुद्र का हर नाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका पिनाक सदैव अपने भक्तों को अभय देने के लिए तत्पर रहता है।


तारकासुर का वध और भगवान हर की भूमिका

जब भगवान शंकर के पुत्र स्कन्द ने तारकासुर का वध किया, तब उसके तीनों पुत्रों ने मेरु पर्वत की एक गुफा में जाकर हजारों वर्षों तक तप किया। इस तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें स्वर्ण, चांदी और लौह के अजेय नगरों का निर्माण करने का वरदान दिया। मय दानव ने अपने तपोबल से तारकाक्ष के लिए स्वर्णमय, कमलाक्ष के लिए रजतमय और विद्युन्माली के लिए लौहमय दुर्ग तैयार किए। इन नगरों को भगवान हर के अलावा कोई नहीं भेद सकता था। ब्रह्माजी के वरदान और शिवभक्ति के प्रभाव से ये असुर देवताओं के लिए संकट बन गए।


भगवान हर की सहायता की प्रार्थना

तारक पुत्रों के आतंक से परेशान देवता ब्रह्माजी के साथ भगवान हर के पास गए और उनकी स्तुति की। उन्होंने कहा, 'महादेव! तारक के पुत्रों ने इंद्र सहित सभी देवताओं को पराजित कर दिया है और यज्ञ भागों को स्वयं ग्रहण कर रहे हैं। कृपया इन असुरों का नाश करें।' भगवान हर ने उत्तर दिया कि वे तारक पुत्रों का वध नहीं कर सकते, क्योंकि वे उनके भक्त हैं। उन्होंने देवताओं को भगवान विष्णु के पास जाने की सलाह दी, ताकि वे धर्म से विमुख हो जाएं। तब भगवान हर शर्व रुद्र के रूप में उनका संहार करेंगे। काठमांडू में भगवान हर की आधिभौतिक मूर्ति पशुपतिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।