भगवान शंकर की शिक्षाएं: मानव शरीर का उद्देश्य
भगवान शंकर और देवी पार्वती के संवाद में मानव शरीर के उद्देश्य पर गहरा प्रकाश डाला गया है। इस संवाद में बताया गया है कि कैसे मानव के प्रत्येक अंग का निर्माण प्रभु की भक्ति और सेवा के लिए किया गया है। जानें कि कैसे निंदा और चुगली जैसे विषाक्त शब्द हमारे कानों को प्रभावित करते हैं और संतों के दर्शन का महत्व क्या है। यह लेख आपको जीवन के असली लक्ष्य की ओर प्रेरित करेगा।
Jul 24, 2025, 12:18 IST
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भगवान शंकर और देवी पार्वती की संवाद
जब भगवान शंकर देवी पार्वती को श्रीराम की कथा सुनाना शुरू करते हैं, तो उनके पहले शब्द गहरे अर्थ लिए होते हैं। भोलेनाथ कहते हैं, 'हे पार्वती, जब मानव शरीर का निर्माण होता है, तो हर अंग को प्रभु की भक्ति और सेवा के लिए बनाया गया है।' उदाहरण के लिए, यदि हम मनुष्य के कानों की बात करें, तो साधारण व्यक्ति अपने कानों से केवल संसार के नीरस गीतों को सुनता है। उसे प्रभु की कथा में कोई रुचि नहीं होती। जब किसी की निंदा या चुगली होती है, तो वह अपने कानों को ऐसे खोलता है जैसे स्वर्ग के द्वार खुल रहे हों। ऐसे लोगों के लिए भगवान शंकर ने कहा-
‘जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना।
श्रवन रंध्र अहिभवन समाना।।’
अर्थात, जो लोग कभी भी हरि की कथा नहीं सुनते, उनके कानों के छेद साधारण नहीं होते, बल्कि वे सर्पों के बिल जैसे होते हैं। निश्चित रूप से, सर्प कभी बिल नहीं खोद सकता, क्योंकि उसकी शारीरिक संरचना उसे ऐसा करने की अनुमति नहीं देती। सवाल यह है कि फिर सर्प की इतनी बिलें कैसे होती हैं? वास्तव में, सर्प चूहे की बिल पर आक्रमण करता है और उसे मारकर उस बिल को अपना घर बना लेता है। इसी तरह, हमारे कानों में प्रभु की कथा का रस होना चाहिए, लेकिन निंदा और चुगली जैसे विषाक्त शब्द हमारे कानों पर अधिकार कर लेते हैं।
इसके बाद भगवान शंकर कहते हैं-
‘नयनन्हि संत दरस नहिं देखा।
लोचन मोरपंख कर लेखा।।’
अर्थात, हमारे नयनों का भी एक विशेष कार्य है। व्यक्ति के चेहरे की सुंदरता में आँखों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। किसी नारी की आँखों की सुंदरता का वर्णन इस प्रकार किया जाता है कि उसकी आँखें मृग की भाँति हैं।
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क्या संतों की दृष्टि में नयनों की सुंदरता की यही परिभाषा है? नहीं! वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि किसी की आँखें कैसी हैं, बल्कि वे यह देखते हैं कि किन आँखों ने संतों का दर्शन किया है। यदि किसी ने समस्त सुंदर दृश्यों का दर्शन किया है, लेकिन संतों का दर्शन नहीं किया, तो उसकी आँखों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। उसकी आँखें ठीक वैसी हैं जैसे मोर के पंखों पर बनी आँखें। मोरपंख पर बनी आँखें देखने में सुंदर होती हैं, लेकिन यह किसी दृष्टिहीन के लिए कोई लाभ नहीं देती। इसलिए, ईश्वर ने मानव शरीर दिया है, इसका उद्देश्य केवल भोग करना नहीं है, बल्कि प्रभु की सेवा और साधना करना है। यही जीवन का असली लक्ष्य है।
आगे भगवान शंकर मानव के सिर पर एक सुंदर व्यंग्य करते हैं। व्यंग्य इस संदर्भ में है कि परमात्मा ने मानव को सिर तो दिया, लेकिन वह इसे गर्व की चाश्नी में डुबोकर किसी और दिशा में ले जा रहा है। हमारे सिर का असली उद्देश्य क्या है? जानेंगे अगले अंक में।
क्रमशः
- सुखी भारती