भीष्म पंचक: जानें इसके महत्व और शुभता
भीष्म पंचक का महत्व
भीष्म पंचक का समय
भीष्म पंचक, कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक चलने वाला एक पवित्र समय है। इसे विष्णु पंचक भी कहा जाता है। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। यह समय विशेष रूप से भीष्म पितामह के सम्मान में उपवास और पूजा करने के लिए समर्पित है।
भीष्म पंचक की परिभाषा
भीष्म पंचक को विष्णु पंचक भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग पूरे कार्तिक मास का व्रत नहीं कर पाते, वे इस समय के अंतिम 5 दिनों में उपवास रख सकते हैं। इस दौरान भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा और दान किया जाता है।
भीष्म पंचक की तिथियाँ
भीष्म पंचक हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होता है और पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस वर्ष, 2025 में, यह 1 नवंबर से शुरू होकर 5 नवंबर तक चलेगा।
भीष्म पंचक का उद्देश्य
यह पर्व उन पांच दिनों का प्रतीक है जब भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग करने से पहले उपवास किया था। इसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। जो लोग पूरे महीने का व्रत नहीं कर पाते, उन्हें भीष्म पंचक का व्रत करने से पूरे महीने का पुण्य प्राप्त होता है।
भीष्म पंचक का महत्व
- भीष्म पितामह का सम्मान: यह उन दिनों का प्रतीक है जब भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर अपने प्राण त्यागने की तैयारी की थी।
- कार्तिक मास का विशेष समय: इस समय को बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
- आध्यात्मिक लाभ: इस दौरान किए गए उपवास और पूजा से कई गुना अधिक पुण्य मिलता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: इस पंचक में की गई तपस्या से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
भीष्म पंचक के नियम
- कार्तिक शुक्ल एकादशी से ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- कुछ लोग इन दिनों विशेष उपवास रखते हैं और केवल हविष्य का सेवन करते हैं।
- दूध और तामसिक भोजन से परहेज किया जाता है।
- भीष्म पितामह का तर्पण भी किया जाता है।
- आकाश दीपक लगाना शुभ माना जाता है।
- भगवान कृष्ण के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
