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रवि प्रदोष व्रत: भगवान शिव की कृपा पाने का विशेष अवसर

रवि प्रदोष व्रत, जो भगवान शिव की उपासना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, हर महीने दो बार मनाया जाता है। यह व्रत रविवार को पड़ता है और भक्तों को भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का अवसर देता है। इस लेख में, हम रवि प्रदोष व्रत के महत्व, पूजा विधि और इसके लाभों के बारे में विस्तार से जानेंगे। जानें कि कैसे इस व्रत के माध्यम से आप अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।
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रवि प्रदोष व्रत: भगवान शिव की कृपा पाने का विशेष अवसर

रवि प्रदोष व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में रवि प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है, जो भगवान शिव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह व्रत रविवार को पड़ता है और इसे रवि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के साथ सूर्य देव की भी कृपा प्राप्त होती है। आइए, हम आपको इस व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में जानकारी देते हैं। 


रवि प्रदोष व्रत के बारे में जानें

प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह दिन सबसे उत्तम होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह का अंतिम प्रदोष व्रत रविवार, 8 जून को है। यह व्रत हमेशा दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है, साथ ही मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत भी रखा जाता है।


प्रदोष व्रत का अर्थ

प्रदोष का अर्थ संध्या काल या सूर्यास्त का समय है। चूंकि इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है और इसे विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए रखा जाता है। भगवान शिव को भोलाभंडारी कहा जाता है, इसलिए इस व्रत को श्रद्धा से रखने वाले भक्तों को महादेव का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। जून 2025 में भी दो प्रदोष व्रत होंगे। 


रवि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 जून को सुबह 7:17 बजे प्रारंभ होगी और इसका समापन 9 जून को सुबह 9:35 बजे होगा। इस प्रकार, प्रदोष व्रत रविवार, 8 जून को मनाया जाएगा। 


रवि प्रदोष व्रत के दिन पूजा विधि

यदि आप इन दोनों योग में भगवान शिव की पूजा करते हैं, तो आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करनी चाहिए। शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा, प्रदोष व्रत में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत की कथा सुनें।


रवि प्रदोष व्रत का महत्व

पंडितों के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस व्रत के फलस्वरूप भक्तों पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की कृपा बनी रहती है। इस व्रत के पुण्य से व्यक्ति के जीवन में किए गए पापों का अंत होता है और उसे सद्बुद्धि प्राप्त होती है। भगवान शिव की आराधना मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी लाभकारी मानी जाती है। प्रदोष व्रत वह मार्ग है, जो व्यक्ति को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिला सकता है। इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।


पूजा की विधि

प्रदोष व्रत के दिन पूजा की विधि में सबसे पहले सभी प्रतिमाओं पर गंगाजल का छिड़काव करें। फिर पूजन स्थल पर घी का दीप जलाएं। सभी प्रतिमाओं को तिलक करें और भगवान शिव को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें जनैऊ, दूर्वा, पान-सुपारी आदि अर्पित करें। फिर शिवलिंग का अभिषेक करें और अंत में आरती करें।


रवि प्रदोष व्रत के लाभ

प्रदोष व्रत हर महीने दो बार आता है। यह व्रत हिंदू माह की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। यदि इस दिन शिवजी की पूजा सच्चे मन से की जाए तो सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। शिव भक्त इस दिन आरती करते हैं और भजन गाते हैं। इस व्रत के दौरान शिव जी के मंत्रों का जाप भी किया जाना चाहिए।