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कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी: साहस और मातृत्व की प्रेरणादायक कहानी

कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी की कहानी एक प्रेरणा है, जिन्होंने मातृत्व की जिम्मेदारी के साथ भारतीय सेना में अद्भुत साहस का प्रदर्शन किया। 52 वर्षीय याशिका, जो देहरादून की निवासी हैं, ने कारगिल युद्ध के दौरान गर्भवती होने के बावजूद अपनी ड्यूटी को निभाया। उनके परिवार का भी सेना से गहरा संबंध रहा है। जानें कैसे याशिका ने अपने अनुभवों से युवतियों को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
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महिलाओं की प्रेरणा: कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी

भारत की महिलाओं ने सुरक्षा और साहस के कई अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से एक प्रेरणादायक कहानी है कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी (सेनि) की। 52 वर्षीय याशिका, जो देहरादून की निवासी हैं, भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारियों में से एक हैं जिन्हें लाजिस्टिक सेवा में तैनात किया गया। 1997 में, उन्हें लेह की ऊंची और कठिन जलवायु में तैनाती मिली, जहां उनका कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण था।


उनकी पोस्टिंग समाप्त होने से पहले, 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया। इस दौरान याशिका को गर्भवती होने की जानकारी मिली, लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्यों से पीछे हटने के बजाय इसे एक नई चुनौती के रूप में स्वीकार किया। अत्यधिक कम ऑक्सीजन, ठंड और शारीरिक तनाव के बावजूद, उन्होंने अपनी ड्यूटी को पूरी निष्ठा से निभाया। उन्होंने कहा कि कई बार सांस लेना भी मुश्किल था, लेकिन उन्होंने सैनिकों के साथ खड़े रहने का संकल्प नहीं छोड़ा।


कैप्टन याशिका का परिवार भी देशभक्ति का प्रतीक रहा है। उनके पिता ने सेना में सेवा की और 1962, 1965 और 1971 के युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई। मात्र सात वर्ष की आयु में पिता को खोने के बाद से ही याशिका का सेना से जुड़ाव और भी गहरा हो गया। पहले उनका सपना आईपीएस अधिकारी बनने का था, लेकिन 1994 में सेना ने महिलाओं को प्रशिक्षण का अवसर दिया, जिसके बाद उन्होंने चेन्नई के ओटीए से प्रशिक्षण प्राप्त किया।


सेना से सेवानिवृत्ति के बाद भी याशिका का देशभक्ति का जज्बा कम नहीं हुआ। वे आज एक प्रेरक वक्ता के रूप में युवतियों को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान को सम्मानित किया है।