क्रिकेट के दिग्गज अंपायर डिकी बर्ड का निधन, उम्र 92 वर्ष

डिकी बर्ड का निधन
नई दिल्ली - इंग्लैंड के प्रसिद्ध अंपायर डिकी बर्ड का मंगलवार को साउथ यॉर्कशायर के बार्न्सली में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। यॉर्कशायर क्रिकेट क्लब ने इस दुखद समाचार की पुष्टि करते हुए बताया कि उन्होंने अपने घर पर अंतिम सांस ली। क्लब ने एक बयान में कहा, 'वह खेल की भावना, विनम्रता और खुशी की एक अद्भुत विरासत छोड़ गए हैं, साथ ही उनके प्रशंसकों की एक बड़ी संख्या भी।'
क्लब ने आगे कहा, 'इस कठिन समय में यॉर्कशायर काउंटी क्रिकेट क्लब के सभी सदस्य डिकी के परिवार और दोस्तों के साथ हैं।' डिकी बर्ड को यॉर्कशायर के इतिहास के सबसे महान व्यक्तियों में से एक के रूप में याद किया जाएगा। खेल के इतिहास में सबसे प्रिय अंपायरों में से एक, डिकी अपने बेहतरीन निर्णयों और अजीबोगरीब आदतों के लिए जाने जाते थे। वह हमेशा समय से पहले मैचों में पहुंचने के लिए जाने जाते थे और पगबाधा आउट देने में संकोच करते थे। एक बार, वह 11 बजे शुरू होने वाले मैच के लिए सुबह 6 बजे स्टेडियम में घुसने की कोशिश कर रहे थे, जब सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें पकड़ लिया था। यह उनका दूसरा प्रथम श्रेणी मैच था।
डिकी बर्ड का जन्म 19 अप्रैल, 1933 को बार्न्सली, वेस्ट राइडिंग ऑफ यॉर्कशायर, इंग्लैंड में हुआ। उन्होंने 1973 से 1996 तक के अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में 66 टेस्ट, 69 एकदिवसीय और सात महिला एकदिवसीय मैचों में अंपायरिंग की। घुटने की चोट के कारण फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में करियर शुरू नहीं कर पाने के बाद, डिकी ने क्रिकेट को अपनाया और इस खेल में एक खिलाड़ी, कोच और अंपायर के रूप में अमूल्य योगदान दिया। दाएं हाथ के बल्लेबाज और ऑफ-ब्रेक गेंदबाज के रूप में, उन्होंने यॉर्कशायर और लीसेस्टरशायर के लिए 93 प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें 3,314 रन बनाए, जिनमें दो शतक और 14 अर्धशतक शामिल हैं।
सन् 1966 से 1969 के बीच, डिकी बर्ड ने प्लायमाउथ कॉलेज और जोहान्सबर्ग में कोचिंग की। उन्होंने 1970 में अपना पहला काउंटी चैंपियनशिप मैच और तीन साल बाद इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच लीड्स के हेडिंग्ले में अपने पहले टेस्ट मैच में अंपायरिंग की। डिकी बर्ड एलबीडब्ल्यू की अपील पर अपनी उंगली उठाने में हिचकिचाते थे और अक्सर बल्लेबाजों को संदेह का लाभ देते थे। डीआरएस के युग में उनके कई फैसले पलट दिए जाते थे। क्रिकेट में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 1986 में एमबीई और 2012 में ओबीई से सम्मानित किया गया था।