टीम इंडिया के WTC फाइनल में न पहुंचने के 3 प्रमुख कारण

टीम इंडिया की चुनौती

टीम इंडिया : विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) का फाइनल हर क्रिकेट खेलने वाले देश के लिए गर्व का विषय बन गया है। भारत ने पिछले दो संस्करणों में फाइनल में जगह बनाई, लेकिन खिताब जीतने में असफल रहा। अब जब चौथा चक्र चल रहा है, तो एक बार फिर भारत के लिए स्थिति कठिन होती जा रही है।
इंग्लैंड के खिलाफ 5 मैचों की श्रृंखला में 1-2 से पिछड़ने के बाद, WTC के फाइनल में पहुंचना भारत के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है। इसके पीछे तीन मुख्य कारण स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं। आइए इन कारणों को विस्तार से समझते हैं।
पहला कारण: गौतम गंभीर की रणनीतिक विफलता
गौतम गंभीर का टेस्ट क्रिकेट में कोचिंग अनुभव सीमित है, और यह मैदान पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। टेस्ट क्रिकेट केवल तकनीक की परीक्षा नहीं है, बल्कि यह रणनीति और धैर्य की भी परीक्षा है। गंभीर की कोचिंग में टीम चयन में बार-बार बदलाव, फॉर्म में संघर्ष कर रहे खिलाड़ियों को प्लेइंग XI में बनाए रखना और परिस्थितियों के अनुसार योजना न बना पाना, भारत की हार के प्रमुख कारण बन रहे हैं।
दूसरा कारण: खिलाड़ियों की चोट
इस WTC चक्र में भारत के लिए सबसे बड़ी बाधा लगातार खिलाड़ियों का चोटिल होना है। ऋषभ पंत की अनुपस्थिति, अक्षर पटेल और अर्शदीप सिंह जैसे प्रमुख गेंदबाजों की फिटनेस समस्याएं टीम की ताकत को कमजोर कर रही हैं। इसके अलावा, शुभमन गिल और रवींद्र जडेजा जैसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी भी पूरी तरह से फिट नहीं दिख रहे हैं। भारतीय टीम की ताकत उसके अनुभवी खिलाड़ियों पर निर्भर करती है, और यदि वे बार-बार चोटिल होते रहेंगे, तो न तो स्थिरता बनी रहेगी और न ही बड़े मुकाबलों में जीत की उम्मीद की जा सकेगी।
तीसरा कारण: सही खिलाड़ियों का चयन
जब कोई खिलाड़ी चोटिल होता है, तो उसकी जगह सही विकल्प तैयार रखना कोचिंग स्टाफ और चयनकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है। लेकिन भारत इस मोर्चे पर लगातार असफल हो रहा है। ऋषभ पंत की जगह ध्रुव जुरेल जैसे प्रतिभाशाली विकल्प को पहले से तैयार नहीं किया गया, जिससे कीपिंग और मिडिल ऑर्डर दोनों कमजोर हो गए। इसके अलावा, अर्शदीप और आकाशदीप के चोटिल होने के बावजूद तेज गेंदबाजी यूनिट में अनुभवी विकल्प नहीं जोड़े गए। नतीजतन, इंग्लैंड जैसे आक्रामक बल्लेबाजों को रोकने वाला कोई मजबूत आक्रमण नहीं बन पाया। बल्लेबाजी में भी करुण नायर या पृथ्वी शॉ जैसे पुराने विकल्पों को बार-बार चुनकर युवा प्रतिभाओं को नजरअंदाज किया गया।