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नेटवेस्ट ट्रॉफी 2002: भारतीय क्रिकेट का ऐतिहासिक पल

नेटवेस्ट ट्रॉफी 2002 का फाइनल मैच भारतीय क्रिकेट के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। इस मैच में भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ 325 रनों के लक्ष्य को पार किया, जिसमें सौरव गांगुली की कप्तानी और युवराज सिंह तथा मोहम्मद कैफ की शानदार साझेदारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जानें इस जीत के पीछे की कहानी और कैसे यह पल भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया।
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भारतीय क्रिकेट का एक अनमोल क्षण

कुछ जीतें केवल स्कोरबोर्ड पर नहीं, बल्कि इतिहास में दर्ज होती हैं। नेटवेस्ट सीरीज़ 2002 का फाइनल मैच ऐसा ही एक क्षण था, जब लॉर्ड्स की बालकनी से एक टीशर्ट ने न केवल मैदान में, बल्कि करोड़ों दिलों में एक नई क्रांति की शुरुआत की। 13 जुलाई 2002 को भारत और इंग्लैंड के बीच खेला गया यह मैच भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अमिट छाप छोड़ गया। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 325 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया, जो उस समय लगभग असंभव माना जाता था। लेकिन कप्तान सौरव गांगुली की आत्मविश्वास से भरी कप्तानी ने यह साबित कर दिया कि असंभव कुछ नहीं है।


जब सहवाग और तेंदुलकर ने कप्तान की सलाह को नजरअंदाज किया, तब गांगुली ने खुद एक इंटरव्यू में बताया कि पारी के प्रारंभ में सहवाग ने उनकी सलाह को अनसुना करते हुए आक्रामक शॉट्स खेलना जारी रखा। गांगुली ने कहा, "मैंने कहा था कि अब संभलकर खेलो, लेकिन सहवाग ने लगातार तीन चौके जड़ दिए। उसके बाद मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा।"


इस मैच से जुड़ा एक और दिलचस्प तथ्य तब सामने आया जब राजीव शुक्ला ने बताया कि गांगुली चाहते थे कि पूरी टीम लॉर्ड्स की बालकनी से अपनी टीशर्ट लहराए। लेकिन सचिन तेंदुलकर ने इस पर असहमति जताई, यह कहते हुए कि, "यह जेंटलमैन का खेल है। अगर गांगुली करना चाहते हैं तो ठीक है, लेकिन सबके लिए यह उचित नहीं होगा।"


गांगुली का टीशर्ट लहराना केवल जश्न नहीं था, बल्कि एक सधी हुई प्रतिक्रिया थी। यह उस पल का जवाब था जब कुछ महीने पहले इंग्लिश खिलाड़ी एंड्रू फ्लिंटॉफ ने जीत के बाद अपनी टीशर्ट उतारी थी। गांगुली ने उसी अंदाज में, लेकिन आत्मगौरव के साथ, इसका उत्तर दिया।


जब भारत की पारी 146 पर 5 थी, तब हार लगभग तय लग रही थी। लेकिन युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ की जोड़ी ने खेल की तस्वीर बदल दी। युवराज ने 69 रनों की तूफानी पारी खेली, जबकि कैफ ने 87 रन बनाकर नाबाद रहे। यह साझेदारी उस समय के लिए चमत्कार से कम नहीं थी।


इस जीत ने भारतीय क्रिकेट को केवल एक ट्रॉफी नहीं दी, बल्कि एक नई सोच और आत्मसम्मान का एहसास कराया। अब भारत मैदान पर दबकर नहीं खेलेगा, बल्कि बराबरी से उतरकर जवाब देगा।