हरियाणा सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार: 70 अधिकारियों पर कार्रवाई

हरियाणा सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार का मामला
हरियाणा सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार की जांच: हरियाणा सरकार ने सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाया है। सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी ने 70 अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार और लापरवाही के आरोप में चार्जशीट दाखिल करने की सिफारिश की है। इसमें जूनियर इंजीनियर, सब-डिवीजनल ऑफिसर और चीफ इंजीनियर जैसे उच्च पदों पर कार्यरत लोग शामिल हैं। यह कार्रवाई विभाग में व्याप्त अनियमितताओं को उजागर करती है। इस बड़े कदम के पीछे की कहानी क्या है?
निर्माण कार्यों में लापरवाही का खुलासा
हाल ही में सिंचाई विभाग ने विभिन्न निर्माण स्थलों की जांच की। इस दौरान कंक्रीट के नमूनों का परीक्षण किया गया, जो गुणवत्ता जांच में असफल रहे। जांच में यह सामने आया कि अधिकारियों ने निर्माण कार्यों में मानकों की अनदेखी की, जिससे सरकारी धन का नुकसान हुआ और जनता का विश्वास भी डगमगाया। इस लापरवाही ने विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
चार्जशीट और अनुशासनात्मक कार्रवाई
सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों को गंभीरता से लिया है। रूल-7 के तहत 70 अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट तैयार की गई है, जिसमें कई सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर और चीफ इंजीनियर शामिल हैं। अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत इन अधिकारियों को जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया गया है, हालांकि विभाग ने अभी तक उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए हैं। यह कदम भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
चौंकाने वाले नतीजे
सरकार ने सॉलिड कंक्रीट के नमूनों की जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था। इस समिति ने निर्माण स्थलों से नमूने एकत्र किए और उनका परीक्षण किया। रिपोर्ट में पाया गया कि नमूने सभी मानकों पर खरे नहीं उतरे, जो न केवल तकनीकी खामी थी, बल्कि संभावित भ्रष्टाचार का भी संकेत था। समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यालय को सौंपी, जिसके आधार पर यह कार्रवाई शुरू हुई। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकारियों ने इस नुकसान का कोई विश्लेषण नहीं किया।
भ्रष्टाचार की गंभीरता
हरियाणा सिंचाई विभाग में भ्रष्टाचार की यह घटना केवल अधिकारियों की लापरवाही की कहानी नहीं है, बल्कि यह सिस्टम की खामियों को भी उजागर करती है। सिंचाई विभाग का महत्व जनता के लिए किसी से छिपा नहीं है। गुणवत्ता से समझौता और वित्तीय नुकसान न केवल सरकार की छवि को धक्का पहुंचाता है, बल्कि किसानों और आम लोगों को भी प्रभावित करता है। सरकार का यह कड़ा रुख भविष्य में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक उम्मीद जगाता है।