पश्चिम एशिया में शांति: एक नई मरीचिका या स्थायी समाधान?

शांति का असली मतलब
शांति तब तक बनी रहती है जब तक कि यह स्वीकार्य हो। जब सत्ता का दुरुपयोग होता है—जब प्रभावशाली, स्वार्थी और आत्ममुग्ध लोग हावी हो जाते हैं—तब शांति टूटने लगती है। यह एक उदासीन सत्य है, लेकिन वर्तमान समय की वास्तविकता यही है।
पश्चिम एशिया की शांति की कहानी
पश्चिम एशिया में जो शांति आई है, वह दो वर्षों की निरंतर बमबारी के बाद आई है, जिसने एक पीढ़ी को नष्ट कर दिया और दूसरी को अपंग बना दिया। यह पहली बार नहीं है कि शांति का दावा किया गया है। पहले भी कई बार युद्धविराम के नाम पर शांति का दिखावा किया गया है, लेकिन हर बार यह बिखर गई। इसलिए, यह नई शांति एक मरीचिका की तरह लगती है, जिसे हम हमेशा खोजते हैं लेकिन कभी नहीं पा सकते। यह शांति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के राजनीतिक दबाव और धमकियों से थोप दी गई है।
यथार्थवाद का सिद्धांत
इस स्थिति को समझने का एकमात्र तरीका यथार्थवाद के सिद्धांत से है। यथार्थवादी हमेशा कहते हैं कि युद्ध के बाद की शांति नैतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक होती है। शांति तब तक टिकती है जब तक शक्ति संतुलित रहती है।
इतिहास की पुनरावृत्ति
पश्चिम एशिया ने पहले भी कई बार ऐसी भोरें देखी हैं। हर दशक अपनी नई सुबह लेकर आता है, लेकिन अंततः विश्वासघात होता है। 1978 का कैंप डेविड समझौता एक ऐतिहासिक सफलता माना गया था, लेकिन यह भी स्थायी शांति नहीं ला सका।
ट्रंप का कूटनीतिक नाटक
डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह सब एक अभियान है—नोबेल पुरस्कार की ओर उनका आत्मघोषित मार्च। उन्होंने इज़राइल के युद्ध को 'बहुत लंबा' बताया और हमास को स्पष्ट अल्टीमेटम दिया। यह कूटनीति नहीं, बल्कि एक दबाव था।
शांति का प्रदर्शन
ट्रंप ने मिस्र में 'पीस इन द मिडिल ईस्ट' शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जहाँ सब कुछ एक चुनावी पोस्टर की तरह था। यह शांति का एक प्रदर्शन था, जिसमें गहराई की कमी थी।
अंतिम विचार
अंत में, शांति तभी टिकती है जब वह साझा होती है। हर ऐतिहासिक भोर में एक ही दोष रहा है: शक्ति के लिए बनी शांति, जनता की नहीं होती। क्या यह शांति वास्तव में बनी थी, या बस एक दिखावा था?