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बलराम जयंती: पौराणिक कथाओं में बलराम का महत्व

बलराम जयंती, जो भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्म का उत्सव है। बलराम को हलधर और बलभद्र जैसे नामों से भी जाना जाता है। उनकी सरलता और भाईचारे की भावना उन्हें एक आदर्श भाई बनाती है। इस लेख में बलराम की जन्मकथा, उनके विवाह और महाभारत में उनकी भूमिका का विस्तृत वर्णन किया गया है। जानें कैसे बलराम ने अपने जीवन में असुरों का वध किया और अंत में योगसमाधि में चले गए।
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बलराम जयंती: पौराणिक कथाओं में बलराम का महत्व

बलराम का परिचय

भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम को प्यार से 'दाऊ' कहते थे। पौराणिक कथाओं में बलराम को एक आदर्श भाई, आज्ञाकारी पुत्र और अच्छे पति के रूप में दर्शाया गया है। त्रेतायुग में लक्ष्मण के रूप में श्रीराम की सेवा करने के बाद, द्वापर में उन्होंने श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रूप में जन्म लिया। उनका स्वभाव सरल और सीधा था, लेकिन वे हमेशा अपने छोटे भाई के साथ खड़े रहते थे।


बलराम जयंती का महत्व

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम का जन्म हुआ था, जिसे बलराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्हें हलधर, हलायुध, बलदेव, बलभद्र और संकर्षण जैसे नामों से भी जाना जाता है। उनका मुख्य अस्त्र हल और मूसल था, जो उनकी पहचान बन गए। पौराणिक चित्रों में वे नीले वस्त्र पहने और हाथ में हल लिए दिखाई देते हैं। किसानों के देवता के रूप में उनकी पूजा की जाती है, और उनके जन्मदिन को हल षष्ठी भी कहा जाता है।


बलराम की जन्मकथा

बलराम यदुवंश के वसुदेव के पुत्र थे। उनकी जन्मकथा महाभारत और अन्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। मथुरा के राजा कंस ने अपनी बहन देवकी से विवाह किया, लेकिन आकाशवाणी ने कहा कि देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा। कंस ने देवकी को मारने का प्रयास किया, लेकिन वसुदेव के अनुरोध पर उसने शर्त रखी कि देवकी की हर संतान को जन्म के तुरंत बाद उसे सौंप दिया जाए। पहले छह संतानों की हत्या के बाद, भगवान विष्णु ने योगमाया को आदेश दिया कि देवकी के गर्भ से भ्रूण को वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया जाए। यही सातवां पुत्र बलराम थे।


बलराम का विवाह

बलराम का विवाह राजा ककुद्मी की पुत्री रेवती से हुआ, जो असाधारण रूप से लंबी थीं। विवाह के बाद, बलराम ने अपने हल से रेवती को सामान्य कद की बना दिया।


महाभारत में बलराम की भूमिका

महाभारत युद्ध से पहले, भीम और दुर्योधन दोनों उनके शिष्य थे। उन्होंने युद्ध में किसी एक का पक्ष न लेकर निष्पक्ष रहना चुना। बलराम गदा युद्ध के विशेषज्ञ थे और उन्होंने धेनुकासुर और प्रलंबासुर जैसे असुरों का वध किया।


बलराम का अंत

महाभारत युद्ध के वर्षों बाद यदुवंश में गृहयुद्ध हुआ, जिससे पूरा वंश नष्ट हो गया। इस घटना से बलराम बहुत दुखी हुए और एक दिन समुद्र तट पर योगसमाधि में चले गए। कहा जाता है कि उनकी देह से एक विशाल सर्प निकला और समुद्र में विलीन हो गया, जो उनके शेषनाग अवतार का संकेत था।