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भारत-चीन संबंधों में नया मोड़: पर्यटक वीजा और कूटनीतिक प्रयास

भारत और चीन के बीच संबंधों में एक नया मोड़ आ रहा है, जिसमें पर्यटक वीजा का पुनः आरंभ और कूटनीतिक प्रयास शामिल हैं। हाल के घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश तनाव कम करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीन यात्रा और शी जिनपिंग से मुलाकात ने इस दिशा में महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। जानें इस संबंध में और क्या हो रहा है।
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भारत-चीन संबंधों में नया मोड़: पर्यटक वीजा और कूटनीतिक प्रयास

भारत-चीन संबंधों में बदलाव

हालांकि गलवान संकट अब एक पुरानी घटना बन चुका है, यह भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। बीजिंग की आक्रामक नीतियों का प्रभाव अब कम होता दिख रहा है, और भारत सतर्कता के साथ चीन के साथ संबंधों को सामान्य करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.


सकारात्मक दृष्टिकोण के संकेत

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन का समर्थन मिलने के बावजूद, दोनों देश अब सतर्क लेकिन सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहे हैं। इस बदलाव में अमेरिका की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, जिसने भारत और चीन को एक-दूसरे के करीब लाने में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया है.


पर्यटक वीजा का पुनः आरंभ

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 24 जुलाई 2025 से चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा फिर से शुरू करने जा रहा है। यह निर्णय पांच साल बाद लिया गया है, जो दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का संकेत है.


जयशंकर और शी जिनपिंग की मुलाकात

हाल ही में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। यह मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के दौरान हुई, जिसमें उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों के विकास पर चर्चा की.


सतर्क सहयोग की दिशा में कदम

2020 में पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद के बाद भारत-चीन संबंधों में तनाव बढ़ गया था। लेकिन अक्टूबर 2024 में, दोनों देशों ने एलएसी पर गश्ती व्यवस्था को लेकर सहमति जताई, जिससे तनाव में कमी आई.


ट्रंप की नीतियों का प्रभाव

भारत और चीन के बीच बढ़ती निकटता का एक प्रमुख कारण ट्रंप प्रशासन की अनिश्चित नीतियां हैं। भारत चीन पर इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी के लिए निर्भर है, और इसका व्यापार घाटा भी एक महत्वपूर्ण कारक है.


आत्मनिर्भर भारत की महत्वाकांक्षा

भारत और चीन के बीच यह सतर्क सहयोग रणनीतिक यथार्थवाद पर आधारित है। हालांकि, यह सहयोग भारत की आत्मनिर्भरता की नीति में कोई कमी नहीं लाता है.