मोहन भागवत का बड़ा बयान: धर्म का अर्थ संतुलन और स्वेच्छा से व्यापार

धर्म और संतुलन का महत्व
मोहन भागवत का बड़ा बयान: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि समाज में संतुलन बनाए रखना ही धर्म है, जो अतिवाद से बचाता है। उन्होंने इसे भारत की परंपरा के अनुसार मध्यम मार्ग बताया और कहा कि यह आज की दुनिया की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भागवत ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार को स्वेच्छा से होना चाहिए, न कि किसी दबाव में।
संघ की कार्यप्रणाली और मूल सिद्धांत
विज्ञान भवन में संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यानमाला के दूसरे दिन भागवत ने बताया कि समाज में परिवर्तन की शुरुआत घर से होनी चाहिए। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन का उल्लेख किया है – कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और नागरिक कर्तव्यों का पालन।
हिन्दुत्व की परिभाषा
भागवत ने हिन्दुत्व की व्याख्या करते हुए कहा कि यह सत्य, प्रेम और अपनापन का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि हमारे ऋषि-मुनियों ने सिखाया है कि जीवन केवल अपने लिए नहीं है, और भारत को दुनिया में मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिए।
विश्व की चुनौतियाँ और धर्म का मार्ग
उन्होंने चिंता व्यक्त की कि दुनिया कट्टरता और अशांति की ओर बढ़ रही है। भागवत ने गांधी जी के सात सामाजिक पापों का उल्लेख करते हुए कहा कि धर्म का मार्ग अपनाना ही समाधान है। धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संतुलन सिखाता है।
भारत का उदाहरण और भविष्य की दिशा
भागवत ने कहा कि भारत ने संकट के समय संयम बनाए रखा और शत्रुता के बावजूद मदद की। उन्होंने कहा कि समाज को अपने आचरण से दुनिया के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
आत्मनिर्भरता और स्वदेशी पर जोर
आर्थिक दृष्टि से भागवत ने एक नए विकास मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया, जो आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संतुलन पर आधारित हो। उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर कहा कि संस्कारों में कोई मतभेद नहीं है।
पंच परिवर्तन और अनुशासन का आह्वान
भागवत ने समाज से बदलाव की शुरुआत अपने घर से करने का आह्वान किया। उन्होंने पारंपरिक वेशभूषा अपनाने और स्थानीय उत्पादों को सम्मान देने पर जोर दिया। अंत में, उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि भारत में सुख और शांति कायम हो।