फिनलैंड की पूर्व ब्यूटी क्वीन की तस्वीर से उठा नस्लवाद का विवाद
फिनलैंड में ब्यूटी क्वीन का विवादास्पद इशारा
नई दिल्ली: फिनलैंड की पूर्व ब्यूटी क्वीन साराह जाफ्से की एक तस्वीर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है। एशियाई समुदाय के प्रति अपमानजनक इशारे के चलते न केवल आम जनता, बल्कि राजनीतिक दल और सरकार भी सवालों के घेरे में आ गए हैं। यह विवाद इतना गंभीर हो गया है कि फिनलैंड की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर पड़ने लगा है।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव
यह विवाद केवल ब्यूटी पेजेंट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी असर पड़ा है। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। फिनलैंड के प्रधानमंत्री को सांसदों की आलोचना करनी पड़ी और नस्लवाद पर देशव्यापी बहस शुरू हो गई।
वायरल तस्वीर का गुस्सा
साराह जाफ्से की वायरल तस्वीर में वह अपनी आंखों को उंगलियों से खींचते हुए नजर आईं, जिसे एशियाई समुदाय के लिए अपमानजनक माना गया। इस तस्वीर के साथ दिए गए कैप्शन ने विवाद को और बढ़ा दिया। सोशल मीडिया पर इसे नस्लवादी व्यवहार करार देते हुए लोगों ने कड़ी नाराजगी जताई और त्वरित कार्रवाई की मांग की।
ताज छिनने और माफी पर सवाल
जैसे ही विवाद बढ़ा, मिस फिनलैंड संगठन ने साराह से उनका ताज छीन लिया। हालांकि उन्होंने माफी मांगी, लेकिन उनकी फिनिश भाषा में दी गई माफी को कई लोगों ने दिखावटी बताया। आलोचकों का कहना था कि माफी का तरीका संवेदनशील नहीं था, जिससे गुस्सा और बढ़ गया।
सांसदों की हरकतें और बढ़ी मुश्किलें
मामला तब और गंभीर हो गया जब फिनलैंड के दो दक्षिणपंथी सांसदों ने साराह के समर्थन में उसी इशारे की नकल करते हुए तस्वीरें साझा कीं। विरोध बढ़ने पर इन पोस्टों को हटाया गया, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। प्रधानमंत्री पेटेरी ओर्पो ने इन हरकतों की कड़ी निंदा की।
एयरलाइन और पर्यटन पर असर
फिनलैंड की राष्ट्रीय एयरलाइन फिनएयर ने स्वीकार किया कि इस विवाद का असर उनकी छवि पर पड़ा है। जापान सहित कई देशों में फिनलैंड के बॉयकॉट की अपीलें की गईं। एयरलाइन ने स्पष्ट किया कि सांसदों के बयान उनके मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करते और सभी यात्रियों का सम्मान किया जाएगा।
नस्लवाद पर नई बहस की शुरुआत
इस घटनाक्रम ने फिनलैंड में नस्लवाद पर गहरी बहस छेड़ दी है। विदेशी समुदायों ने जांच और ठोस कदमों की मांग की है। मिस फिनलैंड संगठन और दूतावास दोनों ने स्वीकार किया कि समाज में मौजूद पूर्वाग्रहों से निपटने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं और किसी भी रूप में नस्लवाद को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
