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शादी के 10 मिनट बाद ही बहन ने सॉफ्टवेयर बग ठीक किया, जानें क्या है कहानी

AI स्टार्टअप KoyalAI की सह-संस्थापक गौरी अग्रवाल ने अपनी शादी के 10 मिनट बाद एक महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर बग को ठीक किया। इस घटना ने सोशल मीडिया पर वर्क-लाइफ बैलेंस और स्टार्टअप संस्कृति पर बहस छेड़ दी है। मेहुल अग्रवाल ने इस कहानी को साझा करते हुए बताया कि कैसे समर्पण और जिम्मेदारी किसी स्टार्टअप की सफलता के लिए आवश्यक हैं। जानें इस प्रेरणादायक कहानी के पीछे की सच्चाई और प्रतिक्रियाएं।
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शादी के 10 मिनट बाद ही बहन ने सॉफ्टवेयर बग ठीक किया, जानें क्या है कहानी

शादी के तुरंत बाद का काम


नई दिल्ली: स्टार्टअप की दुनिया अक्सर सफलता की कहानियों से भरी होती है, लेकिन इसके पीछे की मेहनत और दबाव को कम ही लोग समझते हैं। हाल ही में एक पोस्ट ने इस सच्चाई को उजागर किया है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही है। AI स्टार्टअप KoyalAI के CEO मेहुल अग्रवाल ने बताया कि उनकी बहन और सह-संस्थापक गौरी अग्रवाल ने अपनी शादी के महज 10 मिनट बाद ही एक महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर बग को ठीक किया।


मेहुल ने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें गौरी लाल जोड़े में लैपटॉप लिए बैठी नजर आ रही हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कोई 'फोटो ऑप' नहीं था, बल्कि एक जरूरी कार्य था। मेहुल ने कहा कि स्टार्टअप्स को लोग जितना रोमांटिक समझते हैं, असल में यह उतना ही चुनौतीपूर्ण और मांग वाला होता है। इस दौरान उनके माता-पिता भी नाराज हुए कि शादी के तुरंत बाद काम क्यों किया जा रहा है।




स्टार्टअप की सफलता की कहानी

मेहुल ने अपनी पोस्ट में कहा कि जब लोग उनसे पूछते हैं कि उनकी कंपनी कैसे सफल हुई, तो वे ऐसे क्षणों की ओर इशारा करते हैं। उनका मानना है कि समर्पण और जिम्मेदारी ही किसी स्टार्टअप को सफलता दिलाती है। बाद में उन्होंने बताया कि गौरी हनीमून पर होने के बावजूद रोजाना लगभग तीन घंटे मीटिंग्स कर रही हैं। मजाक में उन्होंने कहा कि 'पति इससे खुश नहीं हैं।'


सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं

यह पोस्ट वायरल होते ही सोशल मीडिया पर वर्क-लाइफ बैलेंस और 'टॉक्सिक स्टार्टअप कल्चर' पर बहस छिड़ गई। कुछ लोगों ने गौरी की मेहनत की सराहना की, जबकि कई ने इसे सीमाओं की कमी बताया।


एक यूजर ने लिखा, 'हसल पसंद है, लेकिन याद रखें, यह मैराथन है, स्प्रिंट नहीं।' वहीं दूसरे ने कहा, 'अगर यह दिखावा नहीं है, तो प्राथमिकताएं तय करना सीखना चाहिए। हर चीज का एक समय होता है।' एक अन्य यूजर ने कहा, 'मैं अपने करियर के लिए समर्पित हूं, लेकिन जिंदगी के खास पलों की कीमत पर नहीं।' कुछ लोगों ने इसे टीमवर्क और डेलीगेशन की कमी के रूप में देखा, जबकि अन्य ने सोशल मीडिया पर 'शो-ऑफ' संस्कृति की आलोचना की।


यह घटना एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती है: क्या काम के लिए व्यक्तिगत पलों की कुर्बानी देना आवश्यक है? या यह स्टार्टअप संस्कृति में असंतुलन का संकेत है? यह कहानी असाधारण समर्पण की मिसाल बन रही है, लेकिन यह काम और निजी जीवन के बीच संतुलन पर गंभीर विचार करने के लिए भी मजबूर कर रही है।